Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org પૃષ્ઠ महाराज छत्रसाल । घेरलिया और चाहा कि यातो जीवित पकड़लें या मारडालें । पर उसकी इच्छा पूर्ण न हुई। ये उसके देखते देखते बीचमेंसे निकल गये और उसे लज्जित हो कर लौटना पड़ा । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir स्वस्थ तो हो ही गये थे, अपने डेरेमें श्राकर इन्होंने चलनेका प्रबन्ध किया । पहिला धावा उन्होंने पवायँपर मारा और उसे लूट लिया । यह नगर ग्वालियर के सूबे में था । सूबेदार, सैयद बहादुर खाँकी हारसे जला हुआ तो था ही, इस समाचारको पाकर और भी कुढ़ गया और एक सेना लेकर छत्रसालसे लड़नेके लिये बढ़ा। कुछ देरतक लड़ाई चली पर अन्तमें सूबेदारको पीछे हटना पड़ा। छत्रसालकी सेना उसके पीछे पीछे ग्वालियरतक चली गयी पर उस समय उनके पास इतने बड़े गढ़को शीघ्र लेनेकी शक्ति न थी । यदि ये लोग कुछ दिनों तक उसको घेरे पड़े रहते तो यह उनके हाथ श्राजाता पर इनके पास इतना समय न था । इसलिये छत्रसालने गढ़ लेनेका विचार छोड़ कर नगरकी ओर अपना ध्यान डाला और उसे लूट लिया । लूटमें डेढ़ करोड़ से अधिक धन हाथ लगा और इसके अतिरिक्त बहुतसे रत्नादि भी मिले। ग्वालियर से चलकर ये लोग कटिया के जङ्गल में ठहरे । यहाँपर सिरौजका थानेदार मुहम्मद हाशिम जो एक बार इनसे हार चुका था फिर इनके विरुद्ध श्राया। इस बार उसके पास पहिले से बड़ी सेना थी क्योंकि ग्वालियर के मी कुछ सिपाही उसके साथ थे । लड़ाई कुछ देरतक बहुत जम कर हुई पर अन्तमें थानेदार पहिलेकी भाँति फिर पराजित हुआ। उसपर विजय प्राप्त करके छत्रसाल हन्टेक आये । यहाँ इनका तृतीय विवाह यहाँके धंधेरे ठाकुर हरीसिंहकी लड़की उदेत कुँअरीसे हुआ । हनूटेकसे ये मऊ श्राये । इसी अवसर में For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140