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પૃષ્ઠ
महाराज छत्रसाल ।
घेरलिया और चाहा कि यातो जीवित पकड़लें या मारडालें । पर उसकी इच्छा पूर्ण न हुई। ये उसके देखते देखते बीचमेंसे निकल गये और उसे लज्जित हो कर लौटना पड़ा ।
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स्वस्थ तो हो ही गये थे, अपने डेरेमें श्राकर इन्होंने चलनेका प्रबन्ध किया । पहिला धावा उन्होंने पवायँपर मारा और उसे लूट लिया । यह नगर ग्वालियर के सूबे में था । सूबेदार, सैयद बहादुर खाँकी हारसे जला हुआ तो था ही, इस समाचारको पाकर और भी कुढ़ गया और एक सेना लेकर छत्रसालसे लड़नेके लिये बढ़ा। कुछ देरतक लड़ाई चली पर अन्तमें सूबेदारको पीछे हटना पड़ा। छत्रसालकी सेना उसके पीछे पीछे ग्वालियरतक चली गयी पर उस समय उनके पास इतने बड़े गढ़को शीघ्र लेनेकी शक्ति न थी । यदि ये लोग कुछ दिनों तक उसको घेरे पड़े रहते तो यह उनके हाथ श्राजाता पर इनके पास इतना समय न था । इसलिये छत्रसालने गढ़ लेनेका विचार छोड़ कर नगरकी ओर अपना ध्यान डाला और उसे लूट लिया । लूटमें डेढ़ करोड़ से अधिक धन हाथ लगा और इसके अतिरिक्त बहुतसे रत्नादि भी मिले।
ग्वालियर से चलकर ये लोग कटिया के जङ्गल में ठहरे । यहाँपर सिरौजका थानेदार मुहम्मद हाशिम जो एक बार इनसे हार चुका था फिर इनके विरुद्ध श्राया। इस बार उसके पास पहिले से बड़ी सेना थी क्योंकि ग्वालियर के मी कुछ सिपाही उसके साथ थे । लड़ाई कुछ देरतक बहुत जम कर हुई पर अन्तमें थानेदार पहिलेकी भाँति फिर पराजित हुआ।
उसपर विजय प्राप्त करके छत्रसाल हन्टेक आये । यहाँ इनका तृतीय विवाह यहाँके धंधेरे ठाकुर हरीसिंहकी लड़की उदेत कुँअरीसे हुआ । हनूटेकसे ये मऊ श्राये । इसी अवसर में
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