Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । साथ रातमें ही उसके पड़ावपर छापा मारा । उसकी हानि तो विशेष न हुई परन्तु वह स्थान उसकी सेनाके लिये सुररक्षित न था इसलिये वह वहाँसे कुछ पीछे की ओर हट गया । निकटस्थ राजा जगतसिंह बुंदेला भी उसका सहायक था । तीन चार दिनतक इसी राजाके अधीन मुग़ल सेना लड़ती रही । अन्तमें छत्रसाल के भतीजेके हाथ उसकी मृत्यु हुई और मुग़ल सेना पीछे हटी । । यहाँसे चलकर छत्रसालने शाहगढ़ ( राजगढ़ ? ) - को घेरा । इतने अवसर में बहलूल खाँने भी अपनी सेनाको सँभाल लिया था । लगभग नौ सहस्र सैनिक लेकर वह भी शाहगढ़ पहुँचा । कई दिनतक फिर घोर संग्राम हुआ जिसके अन्त में बहलूलको भागना पड़ा। उसके जानेपर शाहगढ़ का किला भी इनके हाथ लगा । शाहगढ़ छत्रसाल धामौनीकी श्रोर आये । यहाँ बहलूल फिर इनसे आकर भिड़ा । इस लड़ाई में उसने अपने प्राण देकर ही औरङ्गजेबका नमक अदा किया। बहलूलके मरनेपर छत्रसाल धामौनीसे मऊ चले आये। ये तो कुछ कालतक यहीं रह गये परन्तु इनकी सेना ने इस बीचमें कोटरा अपने अधिकारमें कर लिया । इसके अतिरिक्त और भी कई छोटे छोटे स्थान इनके राज्यगत हो गये । १४. उदारता - परिचय | कोटरे को लेकर छत्रसालकी सेनाने सेवड़ापर (सिवड़ा, सहदूदा या सिहुँड़ा ? ) श्राक्रमण किया । यह स्थान दलेल खाँ नामक पठान सरदारको दिल्लीश्वर से जागीर में मिला For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140