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: महाराज छत्रसाल ।
समुदायको किसीकी ओरसे सन्देह हो जाता है तो फिर उसकी बात कोई नहीं मानता। परन्तु यदि किसी व्यक्तिके ऊपर सर्वसाधारणको यह विश्वास हो जाय कि यह सत्यसे विचलित न होगा और यह हमारा निःस्वार्थ हितैषी है तो वे उसके कहनेले प्राणतक देनेको प्रस्तुत हो जाते हैं । जो मनुष्य नेता बनना चाहता हो उसे पहिले छत्रसाल आदिकी भाँति सब सद्गुणोंका मन्दिर बनना होगा ।
इनके स्वभावपर लोग कहाँतक मुग्ध थे यह इस बातसे ज्ञात होता है कि उस समय इनका राज्य रामराज्य माना जाता था और लोग इनकी रामचन्द्रसे तुलना देते थे। एक कविने लिखा है
कश्यपिके रवि गाइए, कै दशरथको राम । __ कै चम्पतके चकवो, छत्रसाल छबि धाम ॥ यह केवल कविकी अत्युक्ति नहीं हैं, प्रत्युत् और प्रगाणों से भी विदित होता है कि उस समय लोगोंका इनके प्रति ऐसा ही भाव था। ___ इनकी गुणग्राहकताकी भी बहुत सी कथाएँ प्रसिद्ध हैं। परिडतो और अन्य विद्वानों को बहुत पुरस्कार मिलता था और कोई योग्य पुरुष इनके यहाँसे रिक्त-हस्त न आने पाता था। परन्तु और लोगोंकी अपेक्षा कवियोंका अधिक समादर था। एक तो बुन्देलखण्डमें हिन्दीके कवियों का बहुत कालसे सम्मान होता आया है, दूसरे, छत्रसाल स्वयं कवि थे, इसलिये इनके यहाँ कवि लोग और भी एकत्र होते थे। __ वह समय ही ऐसा था कि हिन्दीके अच्छे कवियों को कहीं आश्रय मिलना कठिन था । मुग़लवंशमे भी अकबरादि के दरबारमें हिन्दी काव्यका सम्मान था पर औरङ्गजेबसे इस बात
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