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महाराज छत्रसाल ।
भूषण भनत ऐसे दीन प्रतिपाल को ?।
और रावराजा एक मनमैं न ल्याऊँ,
अब साहूको सराहों के सराही छत्रसालको ।। [साहू महाराज शिवाजीके पौत्र थे। इन्हींके सामने और. जेबकी मृत्यु हुई थी।]
एक और छन्दमें इन्होंने उस डरका वर्णन किया है जो इनके नामसे मुसलमानोंके हृदयमें बैठ गया था
कीबे को समान प्रभु ढूंढि देख्यो भानपै, निदान दान युद्धमें न कोऊ ठहरात हैं । पश्चम प्रचण्ड भुजदण्डको बखान सुनि, भागिबेको पच्छी लौ पठान थहरात है ॥ संका मानि सूखत अमीर दिलीवारे, जब चम्पतके नन्दके नगारे घहरात हैं। चहूँ ओर चकित चकत्ताके दलनपर,
छत्ताके प्रतापके पताके फहरात हैं। [पश्चम महाराज छत्रसालके पूर्वज थे, चकत्ता शब्द चग़तईका अपभ्रंश है जिस वंशम औरङ्गजेबकी उत्पति हुई थी और छत्ता, छत्रसाल के लिये लिखा गया है।]
इनका छत्रसालदशक जिसमें इन्होंने महाराज छत्रसालकी प्रशंसा की है, अपूर्व ग्रन्थ है।
इनके अतिरिक्त और भी कई अच्छे अच्छे कवि दरबारमें रहा करते थे। लाल कविकृत छत्रप्रकाश प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसमें कविने महाराजकी सम्पूर्ण जीवनीको ग्रथित किया है। जनश्रुति है कि इनकी रानी कमलापतिजी भी काव्य-रसिक थीं और कभी कभी स्वयं भी पद्य-रचना किया करती थी।
इसमें सन्देह नहीं कि इनके शासनकालमें हिन्दी काव्यकी
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