Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 130
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संक्षिप्त मालोचना। १२६ - - - - - - - - - --- - - - - - - दसबीस लुटेरे थे जिन्होंने युद्धक्षेत्र देखा भी न था। शत्रुकी रणसामग्रीके उत्तरमें इनके पास सामग्रीका सम्पूर्णाभाव था। उसके पास एक विस्तृत राज्य, प्रपूरित कोष था-इनके पास जो गिने गिनाये रुपये थे वे भी इनको शिवाजीकी उदारताके कारण महाराष्ट्र स्वातंत्र्यके प्रसादस्वरूप मिलगये थे। इन सबसे बढ़कर बात यह थी कि स्वयं इनके सजातीय पुरुषयहाँतक कि इनके सगोत्र ओरछा नरेश, इनके विरोधी थे। - परन्तु क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे। वीरपुरुष ऐसी छोटी बातोंकी ओर ध्यान नहीं दिया करते । उनको धर्मपर और ईश्वरपर दृढ़ विश्वास होता है और वे 'निष्फलता' का विचार भी चित्तमें नहीं टिकने देते। सफलताका मुख्य साधन उत्साहयुक्त साहस है और वह शेष समस्त सामग्री एकत्र करलेता है। थोड़े ही दिनोंमें छत्रसालने अपना सब अभाव दूर कर दिया। धन, सैनिक, सहायक सब ही पर्याप्त मात्रामें मिले जो पहिले इनके शत्र थे वे ही इनकी शरणमें आकर रक्षाको प्रतीक्षा करने लगे। जिस औरंगजेबने इनको दबालेना एक हँसीखेल समझ रक्खा था उसके दाँत खट्टे हो गये और अन्तमें उसे इस प्रान्तसे ही हाथ धोना पड़ा। मुगलोंकी उद्दण्ड गतिकोशृङ्खला-बद्ध करनेवालोंकी स्मरणीय श्रेणी में बुंदेलोंने एक स्तुत्य स्थान पाया। ___केवल एक व्यक्ति एक जातिका उद्धार नहीं कर सकता। कर्मका अटल नियम व्यक्तियोंकी भाँति समुदायोंको भी परिचालित करता है। प्रत्येक राष्ट्र अपने कम्मों के अनुसार सुखदुःख भोगता है। जब किसी अवनत जातिके दुःखके दिन पूरे हो लेते हैं और उसके सत्कर्म उदय होते हैं तो For Private And Personal

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