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उदारता-परिचय।
मित्रोंको कटवाना एक ऐसी नीति है जो औरङ्गजेब ऐसे बुद्धिमानोंको ही सूझती है। जिसके हृदयमें डर या शङ्काओंका राज्य होता है वही ऐसी चाल चलता है और उसका फल उठाता है; 'संशयात्मा प्रणश्यति।
अस्तु, यही नीति दलेल स्वाँके साथ खेली गयी। यह बात बादशाहकी समझ न पायी कि यदि यह जागीर इसके हाथसे चली गयी तो मुगल साम्राज्यका एक टुकड़ा चला जायगा और दूसरे जागीरदार भी घबराकर कदाचित् छत्रसालसे मिल जायँगे। उत्तर पाकर दलेल खाँ अवाक रह गया। जिस छत्रसाल के सामने बड़े बड़े शाही सेनापति न ठहर सके उसका विरोध वह बिचारा निःसहाय जागीरदार क्या करता! निराशाने उसे दबा ही लिया था कि उसे पगबदले. की बातका स्मरण हुआ। छत्रसालके स्वभावकी प्रशंसा उसने बहुत सुनी थी। अब उसने उसकी परीक्षा लेनी चाही।
कुछ समझ बूझकर उसने छत्रसालको एक पत्र लिखा। पगबदलेके सम्बन्ध राव चम्पत उसके भाई थे और छत्र. साल भतीजे होते थे। इसी बातका इशारा बादशाहने भी किया था। अब इसी सम्बन्धका आश्रय दलेल खाँने लिया । उसने छत्रसालसे बूढ़े चचा (अर्थात् अपने )-पर दया करने. की प्रार्थना की। उसके पत्रका यह प्राशय प्रतीत होता था कि यद्यपि वह जीविकाके लिये औरङ्गजेबकी सेवामें था परन्तु छत्रसालके साथ उसे सच्चा स्नेह था और उनका कल्याण चाहता हुआ उनसे रक्षाकी आशा रखता था।।
छत्रसालके यहाँ पत्र पढ़ा गया। उसे सुनकर उनको उस निःसहाय वृद्ध दलेल खाँपर दया भागयी। यद्यपि यह मुल ल्मान था परन्तु किसी समय उनके पिताका मित्र था और
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