Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०२ महाराज छत्रसाल । लौटा कर क्षतिपूर्ति के लिये कुछ धन देने और फिर कभी बुन्देलखण्ड की ओर पैर न बढ़ानेकी शपथ खानेपर पेशवाने उसे छोड़ दिया। इसी अवसरपर छत्रसालजी पेशवा से मिले । उस वृद्ध योद्धाने अपने युवा सहायकको पुत्र कहकर सम्बोधन किया और उनको अनेक धन्यवाद दिये। इसके अतिरिक्त छत्रसालने अपनी कृतज्ञता किस प्रकार प्रकट की इसका उल्लेख श्रागे चलकर होगा । १९. मृत्यु । महाराज छत्रसालकी मृत्युके विषय में कुछ ठीक ठीक पता नहीं चलता। जो बातें कही जाती हैं वे ऐसी हैं कि ऐतिहा लिक दृष्टिसे उनके सम्बन्धमें कुछ कहा नहीं जासकता । यदि वे सत्य भी हों तौभी आधुनिक शिक्षा प्राप्त पुरुषका उनपर पूरा विश्वास होना कठिन है । जनश्रुति ऐसी है कि एक दिन ये ध्रुवसागर तालमे नावपर सैर कर रहे थे कि एक ब्राह्मण श्रया । उसने निवेदन किया कि उसे कुछ लोग गुप्त रीतिले जङ्गलमें एक महात्माके पास लेगये। उन योगीश्वर ने उसके द्वारा छत्रसालके पास यह सन्देशा कहला भेजा, 'तेरे गुरूने तुझे बुलाया है, तेरी धूनी ठण्डी हो रही है ।' सन्देशा सुनाकर वह फिर उसी गुप्त रीतिसे बनके बाहर कर दिया गया । उसकी बात सुनकर महाराजने उसे एक गाँव माफी कर दिया और फिर राज्य के काममें लगगये । देखनेसे तो उनके ऊपर उस वाक्य का कोई प्रभाव प्रतीत न होता था । परन्तु For Private And Personal

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