Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०४ महाराज छत्रसाल । RIA ~-~-~ और भी तीव्र हो गयी हो और ज्येष्ठ शुक्ल तृतीयाको ये परिव्रजन करने निकल गये हों। . अस्तु, जो कुछ हो, इनकी मृत्यु कब, कहाँ और कैसे हुई इसका ठीक पता नहीं लगता । इसलिये इसी तिथिको लोग इनके परलोकगमनकी तिथि मानते हैं। परिणामी सम्प्रदायवाले इस दिन व्रत रहते हैं और धार्मिक कृत्योंमें ही कालयापन करते हैं। कुछ ऐतिहासिकोंकी सम्मति है कि इन्होंने संवत् १७६१ में (सन् १७३४ में) स्वर्गवास किया और इनकी मृत्यु राजप्रासादमें साधारण रीतिसे वृद्धावस्थाके कारण हुई। उस समय इनकी अवस्था ८७ बर्षकी रही होगी। उस सङ्गमर्मरकी चौकीपर अब भी इनकी समाधि बनी हुई है और वह जामा जिसको महाराज उतार कर रख गये थे अबतक रक्खा हुआ है। यह समाधि इनके पुत्र हृदयसाहने बनवायी थी। ___इनकी मृत्युके सम्बन्धमें जो कुछ ऊपर लिखा गया है वह बुंदेलखण्डकी जनश्रुतिके अनुसार है। बहुतसे ऐतिहासिकोका यह विश्वास है कि उक्त तिथिको वस्तुतः उनका देहान्त हुश्रा और कथाएँ उनके भक्तोंने पीछेसे बनाली । यहाँ तक हमने महाराज छत्रसालके जीवनको प्रधान घटनाओंका दिग्दर्शन किया है । अब उस जीवनकी कुछ मुख्य बातांपर विचार करनेकी आवश्यकता है। इसीलिये क्रमशः हम उनके गार्हस्थ जीवन, राज्यप्रबन्ध, स्वभाव आदि विषयोकी आलोचना करेंगे। - For Private And Personal

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