Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल। - किसी प्रबल राष्ट्रको इनका सहायक बनाया जाता जिसमें कि यह आपसमें भीन लड़ सकें और बाहरी शत्रुओंसे भी सुरक्षित रहें। यह सब सोच बिचार उन्होंने राज्यके तीन विभाग किये। पहिला विभाग जिसकी प्राय छत्तीस लाख रुपयेके लगभग थी, हृद्यसाहको दिया गया। इन्होंने पन्नाको अपनी राजधानी बनाया। दूसरे विभागकी भी प्राय छत्तीस लाख के लगभग थी। यह जगतराजको दिया गया जिन्होंने जैतपुरको अपनी राजधानी बनाया। तीसरे विभागकी प्राय उनतालीस लाखके लगभग थी । झाँसी, सागर और बाँदा इसके अन्तर्गत थे। यह बाजीराव पेशवाको दिया गया। इससे छत्रसालने उनको बँदेलोंका मित्र भी बना लिया और उनकी सहायताके लिये अपनी कृतज्ञता भी प्रकाशित कर दी। यह सब मिल कर सवा करोड़के लगभगकी भूमि हुई। कुछ जागीरें इनके और पुत्रोंको भी मिली। - छत्रसालजीके पन्ना नगर बसानेका कथन पहिले ही हो चुका है। इसके अतिरिक्त इन्होंने छत्रपुर भी बसाया था। ये दोनों नगर अबतक हैं । परन्तु मऊ जो इनकी मुख्य छावनी थी और जहाँ इनके बनवाये महल थे, अब नष्टप्राय हो गया है। भारत ऐसे देशमें जहाँ अधिकांश प्रजा कृषिसे ही अपना निर्वाह करती है, वर्षाऋतुसे लोगोंके सुख-दुःखका बहुत ही घनिष्ट सम्बन्ध है। अब तो कई कारणोंसे प्रजा ऐसी दरिद्र हो गयी है कि वह थोड़ेसे व्यतिक्रमको भी नहीं सह सकती। परन्तु पूर्वकालमें भी यदि दो एक वर्षतक भी लगातार अनावृष्टि हो जाती थी तो देश दुर्भिक्षके चङ्गुलमें पड़ नाता For Private And Personal

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