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राज्यका प्रबन्ध।
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था जिससे लाखों प्राणियोंकी मृत्यु होती और सारा व्यापार बन्द होकर देशको और भी निर्धन कर देता । ऐसी अवस्थामें यदि राजकीय सहायता न मिले तो प्रजाकी दशा बहुत ही बुरी हो जाय । आजकल बृटिश गवर्मेण्ट कृषकोंको तकावी देती है, बीज इत्यादि दिलवाती है, जो अत्यन्त दुर्बल हैं उनको और बालकों और वृद्धाको मुफ्त अन्न वस्त्रादि दिया जाता है और जो लोग काम करने योग्य हैं उनके लिये रिलीफ़ व स (अर्थात् ऐसे काम जैसे कुँओं, तालावों, मकानों इत्यादिका बनवाना ) खोले जाते हैं, जहाँ उनसे सरल काम लिया जाता है और पूरी मज़दूरी दी जाती है। यदि ऐसा न किया जाय तो प्रजाके कष्टका ठिकाना न रहे।
कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि पूर्वकालमें प्रजाके लिये इस प्रकारका कोई प्रबन्ध न किया जाता था। यह भ्रम है । एक बार संवत् १७४८ ( सन् १६६१)-के लगभग छत्रसालके राज्यमें अकाल पड़ा। उस समय प्रजाकी कष्ट-निवृत्तिके लिये इन्होंने लगान इत्यादि माफ़ कर देनेके अतिरिक्त वह दो करोड़ रुपया जो इनको कविपत्निसे मिला था, कुल व्यय कर दिया।
कुँअर कन्हैयाजू लिखते हैं कि, इनके यहाँ एक सभा थी जिसमें प्रत्येक जातिके दो दो सभासद थे। सम्भव है कि, 'अष्टप्रधान ' का इन्होंने भी अनुकरण किया हो या राजाओंके लिये जैसी सभाओंका शुक्रनीति आदिमें कथन है उस प्रकारकी कोई संस्था नियत की हो। कुँअरजीके अनुसार इस सभासे शासनसम्बन्धी बातोंमें सम्मति ली जाती थी। यद्यपि प्राचीन कालकी राजसचिव-सभासे इसका अधिकार कहीं कम था, फिर भी खेदकी बात है कि आज
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