Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बहादुरशाहसे भेंट । - पत्र पाकर छत्रसालने यथोचित उत्तर भेज दिया और कुछ सोचकर दिल्ली गये। एक समय वे मुसल्मानोंके सेवक बनकर दिल्ली गये थे। तबमें और अबमें कितना अन्तर था ! उस समय कोई बात भी न पूछता था, इस समय बड़े बड़े अमीर व शाहज़ादे उनके स्वागतके लिये दौड़ते फिरते थे। अस्तु, दिल्ली में यथापद इनका सत्कार किया गया । बादशाहके संधिप्रस्तावको इन्होंने भी स्वीकार किया और उस समयसे फिर कभी इनका व मुगलोका झगड़ा न हुआ। फिर विद्रोहकी बात चली। छत्रलालने उसको शान्त करनेका बचन दिया। उस समय लोहागढ़ का किला विद्रोहियोंका सबसे सुरक्षित और दृढ़ श्राश्रयस्थान था। शाही सेनाओको उसके सामनेसे कई बार हार मान कर हटना पड़ा था। छत्रसालने उसपर आक्रमण किया और फाटक तोड़ कर भीतर घुस गये । किलेके रक्षकोंमेसे तीन सहस्र व्यक्ति मारे गये और छत्रसालके भी पन्द्रह सौ सैनिक काम आये। लोहागढ़से ये फिर दिल्ली आये । अबकी बार पहिलेसे भी बढ़कर समादर दुमा । विजयके लिये बादशाहने धन्यवाद देते हुए एक प्रस्ताव किया । उसका तात्पर्य यह था कि छत्रसाल दिल्लीके चिरसहकारी बन जायें । इसलिये बहादुर शाहने इनके राज्यमें अपनी ओरसे कुछ जोड़कर इनको अपने यहाँका एक प्रधान अमीर बनाना चाहा । परन्तु इन्होंने इस बातको स्वीकार न किया। इन्होंने बादशाहको समझा दिया कि जो श्री मैंने अपने पराक्रमसे प्राप्त की है वह मेरे लिये पर्याप्त है। मुझे किसीसे दान लेनेकी आवश्यकता नहीं है । यदि आपको कभी मऊसे सहायता लेनी हो तो मैं यथासम्भव, धर्मकी मर्यादाकी ओर ध्यान रखता हुआ, आपका For Private And Personal

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