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महाराज छत्रसाल ।
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मत होकर छूटा । जब इस बातका समाचार औरंगजेब को मिला तो उसने अस्मदको पदच्युत करके उसके स्थानमें शाहकुली खाँको नियत किया ।
लगे
जिन दिनों कि छत्रसाल इन मुगल सेनापतियोंसे लड़ने में हुए थे, उनकी सारी शक्ति इसी काममें व्यय नहीं होती थी, प्रत्युत् उनकी सेनाके छोटे छोटे टुकड़े इधर उधर लूटमार और राज्यका विस्तार किया करते थे ।
१६. मुगलोंसे अन्तिम युद्ध 1 किसत म्यानतें मयूखै प्रलयभानुकैसी, फारें तम तोमसे गयन्दनके जालको । लागत लपट कण्ठ बैरिनके नागिनिसी, रुद्रfe fरभावै दै दै मुण्डनके मालको || लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवालको ॥ प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि, कालिकासी किलकि कलेऊ देनि कालको ॥ - ( भूषण ) अभीतक जितने सूबेदार श्राये थे उनमें और शाहकुली में आकाशपातालका अन्तर था । इसमें विषयपरताका लेश भी न था और स्वकर्तव्य साधनही उसकी एक मात्र सुखसामग्री थी । उसे यह भली भाँति विदित था कि उसके पहिलेके सूबेदारोंने अपने श्रालस्य और श्रसावधनतासे छत्रसालको विजय प्राप्तिके अनेक अवसर दिये थे । उस समय मुगलोंकी सेना क्या होती थी, प्रदर्शिनी होती थी ।
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