________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
महाराज छत्रसाल ।
साथ रातमें ही उसके पड़ावपर छापा मारा । उसकी हानि तो विशेष न हुई परन्तु वह स्थान उसकी सेनाके लिये सुररक्षित न था इसलिये वह वहाँसे कुछ पीछे की ओर हट गया । निकटस्थ राजा जगतसिंह बुंदेला भी उसका सहायक था । तीन चार दिनतक इसी राजाके अधीन मुग़ल सेना लड़ती रही । अन्तमें छत्रसाल के भतीजेके हाथ उसकी मृत्यु हुई और मुग़ल सेना पीछे हटी ।
।
यहाँसे चलकर छत्रसालने शाहगढ़ ( राजगढ़ ? ) - को घेरा । इतने अवसर में बहलूल खाँने भी अपनी सेनाको सँभाल लिया था । लगभग नौ सहस्र सैनिक लेकर वह भी शाहगढ़ पहुँचा । कई दिनतक फिर घोर संग्राम हुआ जिसके अन्त में बहलूलको भागना पड़ा। उसके जानेपर शाहगढ़ का किला भी इनके हाथ लगा ।
शाहगढ़ छत्रसाल धामौनीकी श्रोर आये । यहाँ बहलूल फिर इनसे आकर भिड़ा । इस लड़ाई में उसने अपने प्राण देकर ही औरङ्गजेबका नमक अदा किया। बहलूलके मरनेपर छत्रसाल धामौनीसे मऊ चले आये। ये तो कुछ कालतक यहीं रह गये परन्तु इनकी सेना ने इस बीचमें कोटरा अपने अधिकारमें कर लिया । इसके अतिरिक्त और भी कई छोटे छोटे स्थान इनके राज्यगत हो गये ।
१४. उदारता - परिचय |
कोटरे को लेकर छत्रसालकी सेनाने सेवड़ापर (सिवड़ा, सहदूदा या सिहुँड़ा ? ) श्राक्रमण किया । यह स्थान दलेल खाँ नामक पठान सरदारको दिल्लीश्वर से जागीर में मिला
For Private And Personal