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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अबदुस्समद और बहलूल खाँ। ३ - - खड़नी पड़ी थी यह शायद उन सबसे भीषण थी। दोनों दलोंके बहुतसे सिपाही और बड़े बड़े सरदार खेत रहे। दिन. में कई बार तो ऐसा प्रतीत होता था कि अबदुस्समदकी ही जीत होगी। दो एक बार स्वयं छत्रसाल इस प्रकार घिर गये कि यदि थोड़ी देरतक और सहायता न पहुँच जाती तो प्राण बचना कठिन था। परन्तु अन्तमें जीत इनकी ही हुई; अबदुस्समदको अपने डेरेकी ओर हटना पड़ा। जैसा कि सभ्य जातियों में होता है, दोनों ओरसे लोग भाये और अपने हताहत साथियोंको उठा ले गये और जो मारे गये थे उनके, अपने अपने मतके अनुसार, संस्कारमें लगे। अभीतक अबदुस्समद पूर्णरूपसे हारा न था। रातको छत्रसालने फिर उसको सेनापर छापा मारा। वह पहिलेसे घबराई तो थी ही, इस आक्रमणने उसकी अवस्थाको पूर्णतया बिगाड़ दिया। थोड़ी ही देर में सिपाहियोंने पीठ दे दी और अबदुस्समदको हठात् पराजय स्वीकार करना पड़ा। चौथ देकर अन्तमें उसने छुट्टी पायी और यमुनाकी ओर ससैन्य चला गया। युद्धके कुछ काल पीछे, जब कि छत्रसाल जिनको चार घाव लगे थे अच्छे हो गये तो इन्होंने सुहावलपर आक्रमण किया । वहाँके राजा हरीलाल गजसिंहने (गंगासिंह ? ) दो चार दिन सामना करके अन्तमें चौथ देना खीकार किया। ___ जिन दिनों छत्रसाल इन झगड़ों में फंसे हुए थे, उस अव. सरमें भेलसा फिर मुग़लोके हाथमें चला गया था। निदान ये उसे लेनेके लिये फिर आगे बढ़े। रास्तेमें सूबेदार बहलूल स्वाँ पड़ा हुआ था। छत्रसालने थोड़ेसे सिपाहियों के For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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