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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उदारता-परिचय । - था। वह जगह काम देखनाथे दिन था। वह स्वयं तो दिल्ली गया हुआ था, उसका नायब मुराद खाँ उसकी जगह काम देखता था। दो तीन दिनतक इसने किलेका बचाव किया पर चौथे दिन बुंदेलोंका इसपर अधिकार हो गया और मुराद खाँ मारा गया। दलेल खाँका छत्रसालसे एक पुराना सम्बन्ध था। उससे और इनके पिता राव चम्पतसे मित्रता थी। किसी समय इस मैत्रीके प्रमाणमें इन्होंने आपस मे पगबदला किया था अर्थात् एकने दूसरेकी पगड़ी पहनी थी। उस समयमें यह क्रिया मैत्रीके लक्षणकी चरमसीमा थी। जिन लोगामें पगब. दला होता था वे जन्मभर भ्रातृभाव निबाहते थे और यह पारस्परिक प्रेम उनके कुटुम्बियोंमें भी कई पीढ़ीतक चला जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि छत्रसालको इस बातकी स्मृति न थी कि मेरे पितासे दलेल खाँका पगबदला हुआ है, नहीं तो वे कदाचित् उसकी जागीरपर आक्रमण न होने देते। यह भी सम्भव है कि बलदिवानने बिना उनसे पूछे ही ऐसा कर दिया हो, क्योंकि जहाँतक पता चलता है स्वयं छत्रसाल उस समय मऊमें थे। __ अस्तु, जो कुछ हो इस बातकी सूचना भी औरङ्गजेबको मिली। समाचार पहुँचने के कुछ ही काल पश्चात् दलेल खाँ दरबारमें आया। बादशाहने उससे कहा, " सुना है, अब भतीजा चचाकी रोटीपर भी हाथ मारने लगा है।" दलेलखाँ इस बात का अर्थ कुछ भी न समझ सका और पूछनेका साहस न कर सका। थोड़ी देर में जब दरबारसे यह घर पाया तो उसे भी सब समाचार मिला। मुराद खाँ उसका बड़ा प्रिय मित्र था। उसकी मृत्युसे दलेलको बड़ा शोक हुमा। साथ ही इसके अपनी जागीरके लुट जानेका भी For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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