________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
महाराज छत्रसाल।
-
-
-
१३. अबदुस्समद और बहलूल खाँ । अत्र गहि छत्रसाल खिझ्यो खेत बेतवैको,
उतते पठान कीन्हीं झुकि झपट । हिम्मति बड़ीके गबड़ीके खिलवारनलों,
देत सै हज़ारन हज़ार बार चपटै ॥ भूषण भनत काली हुलसी असीसनको,
सीसनको ईसकी जमाति जोर जपर्ट । समद लौं समदकी सेना त्यों बुंदेलनकी, सेलें समसेरै भई बाड़नकी लपटें ॥
-(भूषण) मिर्जा सदरुद्दीनके पराजयका समाचार पाकर मोरङ्गजेबने संवत् १७४७ (सन् १६९० ) में अमीर अबदुस्समदको बुन्देलखण्ड भेजा। यह भी अपने साथ एक बड़ी सेना लाया, जिसकी संख्या कमसे कम तीस सहन थी। मौधाके समीप दोनों सेनाओका सामना हुआ।
चैत्र शुक्ल पञ्चमीको युद्ध प्रारम्भ हुआ। सबेरेका समय था। छत्रसाल स्वयं अपनी सेनाके मध्य भागमें थे। दहिना विभाग बलदिवान और बायाँ रायमन दौाके अधीन था । पहिले दोनों सेनाओं में बहुत अन्तर था और तोपों व बन्दूकोंसे लड़ाई होती रही। परन्तु थोड़ी ही देर में, जैसा कि पुराने समयमें भारतीय सेनाओंमें प्रायः होता था, दोनों ओरके सैनिक इतने निकट आ गये कि ये अस्त्र बेकाम हो गये और तलवार, कटार आदिसे काम लिया जाने लगा। दोनों ओर. के सैनिक आपसमें गुथ गये और संध्यातक घोर घमासान लड़ाई हुई। अभीतक जितनी लड़ाइयाँ बुंदेलोको मुग़लोसे
For Private And Personal