Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रनदूला और तहव्वर खाँ। ९-रनदूला और तहव्वर खाँ। भुज भुजगेसकी वै संगिनी भुजंगिनीसी। खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलनके ।। बखतर पावरिन बीच धुंसि जात मोन । पैरि पार जात परबाह ज्यों जलनके ।। रैया राय चम्पतिको छत्रसाल महाराज । भूषन सकत को बखानि यो बलनके ।। पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर । तेरी बरछीने बर छीने हैं खलनके ॥ __ -( भूषण) ऊपर जिन बातोंका कथन किया गया है उनका समाचार औरंगजेबको अविदित न था । एक तुच्छ डाकूका इस प्रकार सिर उठाना और अक्षत रह जाना मुगलशासनके लिये लजाकी बात थी और, साथ ही, इस बातका भी डर था कि इस उदाहरणको देख कर और लोग भी धृष्ट हो जायँगे। यह सोच कर औरङ्गजेबने छत्रसालको दबानेका प्रबन्ध करना प्रारम्भ किया । शाही सेनाका मुख्य सेनापति रनदुला था और सहायक सेनाएँ ओरछा, सिरौंज, पीलीभीत, दतिया, धामौनी, कोच, आदि स्थानोपर एकत्र हुई। 'छत्रप्रकाश के अनुसार रनदूलाके पास कमसे कम तीस सहस्र सिपाही थे और सब ही मुगल सरदार और छत्रसाल-द्रोही बुंदेले जागीरदार उसके सहायक थे। छत्रसालके पास भी इस समय पर्याप्त सेना थी यद्यपि उसकी संख्या शाही सेनासे कम थो और इनके पास उतना प्रबल तोपखाना न था जैसा कि मुगलोंके पास था। उनको For Private And Personal

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