Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org e महाराज छत्रसाल । अवस्थामें इन्होंने परासमाधि प्राप्त की। योगासनसे बैठकर और ध्यानावस्थित होकर प्राण त्याग दिया और स्वरूपमें लीन हो गये। इसके पहिले ही ये छत्रसालको अपनी गद्दीपर बैठा गये थे । अतः इनके सम्प्रदाय में छत्रसालजी ही इनके उत्तराधिकारी हुए। इस समय छत्रसाल केवल एक बड़े राज्यके नरेश न थे प्रत्युत् एक प्रसिद्ध सम्प्रदाय के धर्मगुरु भी थे। वस्तुतः इस समय ये प्राचीन कालके जनकादि राजर्षियोंके भाँति संसार और परमार्थ दोनोंकी सिद्धिके एक उज्वल आदर्श थे। रणभूमिमें शत्रुओंके साथ लड़ना और साथ ही शिष्योंको ब्रह्मज्ञानका उपदेश देना क्षुद्र जीवोंका काम नहीं है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राणनाथजीका शरीर उसी पूर्वनिर्मित समाधि-भवनमें रख दिया गया । भवनके ऊपरके खण्डमें इनकी सेज और कलगी है और पास ही इनकी वाणीकी पोथी रक्खी है । यह ग्रन्थ पद्यमें है और इसका नाम कुलजम स्वरूप है । ठाकुर महाराजसिंह अपने इतिहासमें लिखते हैं कि प्राणनाथ जीने कुरान की आयतोंका भाषामें अनुवाद किया है और उनपर व्याख्या की है । सम्भव है कि ऐसा हुआ हो; परन्तु कुलजम स्वरूपमें प्रायः वैसी ही वाणियां होंगी जैसी कि कबीर, नानक, दादू आदि आधुनिक महात्माओंने कही है। नीचे के खण्ड में इनका शरीर तेलमें डुबाकर लकड़ीके एक सन्दूक में रक्खा है। प्रत्येक दिवालीको यह तेल बदला जाता है । इस सम्प्रदाय के लोग परिनामी ( या धामी ? ) कहलाते हैं। ये लोग गुजरात, काठियावाड़, मारवाड़ और बुन्देल For Private And Personal

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