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महाराज छत्रसाल।
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वीरतासे युद्ध किया। परन्तु सायङ्कालके समय बुंदेलोके पाँव उखड़े। यद्यपि उनकी परिस्थिति इतनी नहीं बिगड़ी कि उसे सम्पूर्ण हार कह सकें परन्तु उस दिन जीत मुसल्मानोंके ही हाथ रही। दूसरे दिन फिर सबेरे ही लड़ाई प्रारम्भ हुई। बुंदेलोंके सेनापति बलदिवान थे। उस समय छन्नसाल युद्धक्षेत्रमें न थे। मुसल्मानोंकी सेना दो दलोंमें विभक्त थी और दोनों के बीचमें बँदेले थे। थोड़ी देरके पश्चात् बुंदेले बीचमेंसे ही एक ओर घोर जङ्गलकी ओर भागे। इस शीघ्रताके साथ यह काम किया गया कि दोनों मुसल्मानी दल एक दुसरेके सामने हो गये और घबराहट में क्षणभरके लिये एक दूसरेपर शस्त्रप्रहार करते रहे। जबतक वे सँभलें, बलदिवान और छत्रसालने उनपर आक्रमण किया। छत्रसाल भी वहीं पास ही जगलमें छिपे हुए थे। इस पहिलेस बड़ी सेनाके भा जानेसे मुसल्मानी सेना और भी घबरा गयी। यद्यपि वह कुछ देरतक बड़ी बीरतासे लड़ती रही पर अन्तमें हारकर भाग पड़ी। लगभग एक योजन (चार कोस) तक मुसल्मानोंकी लोथें इतस्ततः क्षेत्रमें पड़ी हुई थीं। स्वयं मिर्जासाहब पकड़े गये। कई दिन बन्दी रहकर वे चौथका वचन और सवालाख रुपया तत्काल देनेपर छूटे।
इस युद्ध में इनके भी कई नामी सरदार काम आये पर लाभ भी बहुत हुआ। रुपयेके अतिरिक्त बहुतसी आवश्यक युद्ध-सामग्री हाथ लगी।
लड़ाईके पश्चात् छत्रसालजी चित्रकूटकी ओर श्रीकामतानाथजीके दर्शनके लिये चले । यहाँ हमीदखाँ पहिलेहीसे पड़ाव डाले पड़ा था और वहाँके साधुओं और मानेजानेवाले यात्रियोंको बहुत कष्ट दे रहा था। छत्रसाल थोडेसे सैनिकोंके
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