Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir योगिराज प्राणनाथ। AMAN मन्दिर में सेवा टहल करने और साधुओंके सत्सङ्गमें इनका समय बीतता था। कहते हैं कि एक दिन स्वामीजीके अनुरोधसे ये मन्दिरमें मूर्तिकी पूजा करने गये। दूसरे दिन पट खुलनेपर लोगोंने देखा तो मूर्तियाँ वहाँ न थीं। इस घटनाने सबको शोक-सागरमें डुबा दिया। किसीने स्त्राने पीने का नाम भी न लिया। रात्रिमें स्वामीजीको भगवान्ने यह स्वप्न दिया कि, "मेहराजसे पूजा मत कराओ, क्योंकि वह एक बड़ा ही तेजस्वी पुरुष है। यदि वह आग्रह करतो उसे जामा पटका देदो"। ऐसा ही किया गया और प्रातःकाल सब मूर्तियाँ अपनी अपनी जगहमें पायी गयीं । जो कुछ हो, अब भी इनके सम्प्रदायवाले पटकेकी पूजा करते हैं। कुछ काल वृन्दावनमें रह कर इन्होंने देशाटण करना प्रारम्भ किया। घूमते घूमते मारवाड़में इनको उन महात्माके दर्शन हुए जिनके आशीर्वादसे इनका जन्म हुआ था। उनका नाम धनीदेवचन्द था। उनसे इन्होंने योग और वेदान्तकी दीक्षा ली। कुछ कालतक योगाभ्यास करके ये फिर पर्यटणके लिये निकले। इस समय इनके साथ स्वयं इनके कई शिष्य थे। योही ये पन्ना पहुँचे । कहते हैं कि पहिले कुँडिया नदीका जल विषैला था पर इन्होंने उसके इस दुर्गुणको दूर कर दिया। इस बातकी प्रसिद्धी घर घर फैली और राजभवनतक पहुँची। स्वयं छत्रसाल इनसे मिले और पीछेसे ये भी उनसे मिलनेके लिये मऊ चले गये। रानी दानकुँअरी बाईजूराजकी शिष्या हो गयी और इसीसे बाईजू प्रायः पन्नामें ही रहा करती थीं। बाईजू मेहराजजीको 'प्राणनाथ' कह कर पुकारा करती थी इसीसे इनका नाम 'प्राणनाथ' ही प्रसिद्ध हो गया। For Private And Personal

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