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रनवखा और तहव्वर साँ।
amavourna
दस नामो सरदार मारे गये और सत्ताईस पाहत हुए, पर कालिञ्जर ऐसे गढ़के मिल जानेसे इनका बल बहुत बढ़ गया और समयपर काम देने योग्य एक बहुत ही उपयुक्त स्थान हाथ लग गया । छत्रसालने चौबे मानधाताको वहाँका किलेदार नियत कर दिया और पाँचसौ सिपाही गढ़की रक्षा
के लिये उनके पास छोड़ स्वयं मऊ चले आये। ____थोड़े दिन मऊमें ठहरकर इन्होंने दक्षिणकी ओर प्रयाण किया। रामनगरसे होते हुए, ये पहिले सागरके किलेपर टूटे। सागरके पीछे दमोहकी बारी आयी और फिर डोलची और बिरहना लूटे गये । रास्तेमें नरसिंहगढ़को लेते हुए परिचको लूटा और वहाँसे चलकर हिनौतो, कोटरा और जलालपुरको हस्तगत किया। जिस समय छत्रसाल जलालपुरसे चलकर बेतवा नदी पार करने लगे तो पठानोंकी एक सेनाने इनको रोकना चाहा पर उसकी हार हुई और उसके सेनापति सैयद लतीफ़के प्राण भी बड़ी कठिनताले हम्मीर धंधेरेके प्रयत्नसे बचे।
यहाँसे हारकर सैयद लतीफ़ने जटधड़ी ( या जटगड़ी)में रेरा डाला। यहाँ उसकी छत्रसालसे फिर मुठभेड़ हुई
और उसे हारकर दक्षिण भागना पड़ा । उसे हराकर ये बाँदाकी ओर बढ़े और शीघ्र ही बाँदा, कालपी आदि स्थान इनके वशमें आगये। इन स्थानोंकी प्रजाने इनका किसी प्रकारसे विरोध न किया; इसलिये लूट आदिसे प्रजाकी सर्वथा रक्षा हो गयी।
अभीतक तो शाही अफ़सरोंसे लड़ाई होती रही; अब कुछ देहातियोंको भी लड़नेकी इच्छाने आ घेरा । कई गाँवोके ज़मीदारोंने मिलकर इनकी गतिको रोकना चाहा ।
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