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रनदूला और तहव्वर खाँ ।
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भीतर ही श्रागये होंगे। पर यह उनका भ्रम था । जिस समय उन्होंने गढ़पर श्राक्रमण किया और गढ़वाले भीतरले उनपर गोले बरसा रहे थे उसी समय जंगलोंके रास्ते से आकर बाहर से छत्रसालने उनपर धावा मारा । श्रब मुगल सेना दो विरोधी सेनाओं के बीच में पड़ गयी और उसके पैर उखड़ गये। | एक पहर रात तक लड़ाई होती रही पर अन्तमें छत्रसालकी ही जीत हुई। मुगलोंके बहुतसे सैनिक मारे गये और उनकी दस तोपें भी बुँदेलोंके हाथ लगीं । रनदूलाको पीछे हटना पड़ा पर छत्रसालकी सेनाने कई पड़ावतिक उसका पीछा करके उसे और भी छिन्न भिन्न कर दिया |
रनदूलाको पराजित करके छत्रसालने श्रौंड़ेरा, हरथौन और धामौनीको लूटा और ललितपूरके सभी मुख्य मुख्य स्थानोंका चक्कर लगाते नरवर में डेरा डाला । यहाँपर इनको यह समाचार मिला कि दक्षिणसे सौ गाड़ियाँ रुपये व रत्नोंसे भरी हुईं दिल्लीको जा रही हैं। इन्होंने जाकर उनको लूट लिया और सारा माल इनके हाथ लगा ।
रनदूलाके पराजित होनेपर बादशाहने बक्काखाँके साथ एक फौज़ रूमियोंकी भेजी। ये रूमी सिपाही अपनी वीरता और निर्दयता के लिये प्रसिद्ध थे । बसियाके मैदानमें छत्रसाल और बक्का खाँका सामना हुआ । छः घण्टे तक लड़ाई हुई पर अन्तमें बुन्देलों को हटना पड़ा। पर इससे वे हताश न हुए, पास के ही जंगलों में दबके पड़े रहे । श्राधी रात होनेपर रूमियोंके यहाँ गोलाबारूद बँटना श्रारम्भ हुआ और एक प्रकारका गोलमालसा हो गया। बुन्देलोंकी ओरसे तो वे निश्चिन्त बैठे ही थे। ऐसे ही श्रवसरपर छत्रसालकी सेनाने उनपर धावा मारा। वे प्रस्तुत तो थे ही नहीं, इस श्राकस्मिक श्रा
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