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जातीय युद्धका प्रारम्भ।
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छत्रसालको रोकना चाहा पर वे दृढ़ रहे और दूसरे दिनके लिये सब प्रबन्ध कर दिया गया।
सेबेरे ही लड़ाई प्रारम्भ हुई। पहिले दोनों बीरोंमें यह विवाद उठा कि प्रथम शस्त्रप्रहार कौन करे । अन्तमें छत्रसालके अनुरोधसे केशवरायने ही पहिला हाथ चलाया। थोड़ी देरतक दोनों योद्धा अपने अपने कौशलको योही दिखलाते रहे परन्तु अन्तमें केशवराय मारे गये। दोनों सेनाओंमें ऐक्यभाव तो पहिले ही प्राचुका था और केशवरायकी बीरतापर सब ही मुग्ध थे। अतः उस दिन दोनों ओर खेद ही मनाया गया।
दूसरे दिन छत्रसालने केशवरायके पुत्र विक्रमसिंहको बुलाकर अनेक प्रकारकी सान्त्वना दी। उसे उसकी पिताकी जागीरपर नियत कर दिया और किसी प्रकारका कर न माँगा। इसके अतिरिक्त उसको अपनी सेनामें एक प्रधान पदपर नियुक्त कर दिया । इन बातोसे विक्रमसिंह, जो कदाचित् पितृशोकके कारण इनका शत्रु हो जाता, इनका अनन्य सेवक और सच्चा हितैषो बनकर एक प्रबल अनुगामी हा गया । बीरताके साथ साथ दयायुक्त नीति योग्य राजाओं का एक मुख्य गुण है।
इस लड़ाई में छत्रसाल भो कुछ आहत हुए थे। इसलिये लगभग एक मासतक ये कोई नया काम न करसके और एकान्त सेवन करते रहे । जब घाव कुछ अच्छा हुआ तो एक दिन थोडेसे सिपाहियोंके साथ मृगयाके लिये निकल गये। उधर पासमें ही ग्वालियरके सूबेदारके एक सेनापति सैयद बहादुरखाँका पड़ाव था । उसको इनके जंगलमें होनेका समाचार किसी प्रकार मिल गया । सुनते ही उसने इनको
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