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प्रारम्भिक कार्यवाही ।
परन्तु अब वह समय चला गया था। अब इनकी आँखोंके सामने से लोभका पट दूर हो गया था और यवनद्वेष की प्रचण्ड अग्नि इनके हृदय में भड़क उठी थी । इसके साथ ही यदि कोई कमी रही भी हो, तो शिवाजीके वीररसपूर्ण वाक्योंने उसे निकाल बाहर कर दिया था। मुगलोंकी सेवाका विचार अब इनके चित्तमें स्वप्नमें भी स्थान नहीं पा सकता था, चाहे उस सेवामें कितना भी लाभ क्यों न हो ।
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પ
अतः छत्रसालने शुभकर्णकी बातको अस्वीकृत किया । उन्होंने उनसे अपना अनुभव कहा और मुगलों के या यो कहिये कि मुसल्मान मात्रके दुर्गुणोंका कच्चा चिट्ठा खोला । उनकी कृतघ्नता, स्वार्थपरता, हिन्दू द्वेष और कौटिल्य के अनेक सर्वज्ञात उदाहरण उपस्थित किये और बुन्देलखण्ड में ही उन्होंने जो जो अत्याचार किये थे और जो सबको ही विदित थे उनकी चर्चा छेड़ी । अन्तमें उन्होंने शुभकर्णको भी देशस्वातंत्र्यप्राप्तिके शुभकाय्र्यमें योग देनेकी मन्त्रणा दी ।
परन्तु प्रत्येक मनुष्य सच्छिक्षाका पात्र नहीं होता। जो हृदय लोभसे भर रहा है वह किसी महत्कार्य्यका सम्पादन नहीं कर सकता। वह अत्मत्यागमें असमर्थ हो जाता है। शुभकपर छत्रसालकी शिक्षाका उल्टा प्रभाव पड़ा । वे इस बात के लिये प्रस्तुत न थे कि अपने वर्त्तमान तुच्छ सुखको मातृभूमिकी सेवामें समर्पित करके अक्षय्य पुण्य और सुखको प्राप्त करें । पहिले तो उन्होंने छत्रसालको इन विचारोंसे रोकना चाहा परन्तु जब उन्होंने यह देखा कि हृढ़प्रतिश हैं तो उनको राजद्रोही समझकर उनके शत्रु बन बैठे। औरंगजेब के द्रोहीसे द्रोहन करना मानों औरंगजेब से ही द्रोह करना था । यदि वे चाहते तो उपेक्षाभाव रख सकते थे। छत्रसालकी