Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । - % और इनका सम्मान किया । सेनामें एक योग्य पद भी इनको दे दिया गया। यद्यपि मुग़ल सेनामें नौकर होना इनके पूर्व प्रणके विरुद्ध था, तौभी इन्होंने इस बातको यह समझ कर खीकार किया था कि इस प्रकार लड़नेका कुछ अनुभव हो जायगा और अपने शत्रु मुग़लोके सम्बन्धमे बहुतसी आव. श्यक बातें ज्ञात हो जायेगी। साथ ही इसके, जयसिंहके अधीन काम करने में उतनी ग्लानि भी नहीं प्रतीत होती थी। क्योंकि मुग़लोके वशवर्ती होते हुए भी वे एक प्रकारके अर्ध-स्वतन्त्र हिन्दू राजा थे। देवगढ़में छत्रसाल के भाई अङ्गद राय थे । जयसिंहकी माज्ञासे छत्रसालने उन्हें किसी युक्तिसे बुलवा लिया। यह इन दोनों भाइयोंकी पहिली भेंट थी-इसके पहिले इन्होंने एक दूसरेको कभी देखा न था। अत्यन्त अल्प कालमें दोनों भाइयों में बहुत ही प्रेमभाव उत्पन्न हो गया। अङ्गद रायको भी जर्यासहकी सेनामें एक पद मिल गया और दोनों भाई साथ ही वहाँ रहने लगे। जयसिंहके कृपापात्र होने के कारण इनको किसी प्रकार का कटन था और इन लोगों को इस बातकी प्रबल प्राशा थी कि महाराजके द्वारा हम नोगोंके कार्य की सिद्धि होगी, क्योंकि जयसिंह स्वयं योग्य पुरुष थे और योग्य पुरुषोंका समादर करना जानते थे। इसी बीच में यह समाचार पाया कि महाराज जयसिंहको दिल्ली जाना होगा और उनके स्थानमें नवाब बहादुर खाँ सेनापति होंगे। बहादुर खाँ एक योग्य व्यक्ति थे और कई युद्धोंमें कौशल दिखला चुके थे। चम्पत रायसे इनसे मैत्री भी थी जिसके प्रमाणमें एक समय इन दोनोंने आपसमें पग-बदला (पगड़ी बदलना) भी किया था। किन्तु छत्रसालको For Private And Personal

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