Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३० महाराज छत्रसाल । पर उनको सफलता न हुई । इन बातोंको वे पहिलेहीसे सोच चुके थे और इनकी निःसारता इनपर पहिलेहीसे विदित थी। इनको सुनकर उनकी अग्नि और भी प्रज्वलित हो उठी और वे वहाँसे उठ कर जङ्गलको चल दिये । संध्याको मृगया करके घर लौटे और चचासे अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा फिर निवेदन की। इसके पीछे, न जाने क्या सोचकर वहाँसे उठे और बिना किसीसे कुछ कहे सुने कहींको चल दिये। ___ यह समाचार थोड़े ही कालमें दुर दूरतक फैल गया। ठीक ठीक बात तो किसीको शात थी ही नहीं, लोगोंने अपनी अपनी कल्पनाओंको जोड़जाड़ कर इसे और भी बढ़ा दिया । कोई तो सुजान रायको दोष देता था और कोई छत्रसालको अपराधी और मूर्ख ठहराता था। बहुत लोग तो उदासीन बने रहे या छत्रसालकी धृष्टताको दण्डाह बतलाते रहे। कुछ लोगोंने उनकी वीरताको श्लाध्य कहकर उनकी भावी स्थितिपर चार आँसू बहानेको ही अपने कर्तव्यकी चरम सीमा समझी। पर देशमें कुछ ऐसे भी देशभक्त वीर पुरुष थे जो अपनी वर्तमान परिस्थितिस सन्तुष्ट न थे और जिनके हृदयमें चम्पत रायके समयकी लगी हुई आग अबतक बुझी न थी । ये लोग समाचार पाते ही छत्रसालके अनुसंधानमें निकले। इनकी सोयी हुई आशाएँ फिर जागृत हो गयीं और इनको यह विश्वास हो गया कि देशका चिर-प्रतीक्षित नेता आ गया है। For Private And Personal

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