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छत्रसालका लड़कपन ।
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में उदासीनता या अकर्मण्यतामें परिवर्तित कर देते; परन्तु छत्रसाल साधारण मनुष्य न थे, उनका हृदय दुर्बलतासे शुन्य था, कठिनाइयोंके सामने उनका साहस द्विगुण हो जाता था और यह वयस् भी ऐसी थी कि मनुष्य इस समय प्रायः प्राशापूर्ण होता है।
अतः उन्होंने अपने चचाको भी उत्तेजित करना चाहा, और उनके आगे पिताका बदला लेने और देशको स्वातंत्र्य देनेका विचार प्रकट किया। सुजान राय जी इन बातों को सुन कर घबरा उठे। थे क्षत्रिय और सजन पुरुष, इसलिये इन विचारों को निंद्य और कुत्सित तो कह नहीं सकते थे। परन्तु उनके सामने चम्पतराय और शालिवाहनकी मृत्युका दृश्य आ गया । वे भली भाँति जानते थे कि ओरछा विरोध करनेपर तुला बैठा है और मुगलोंकी विजयकी सम्भावना पहिलेसे कहीं बढ़कर है । अतः उन्होंने वही परामर्श दिया जिसकी उनकी अवस्थाके एक वृद्ध पुरुषसे अपेक्षा की जाती है। उन्होंने छत्रसालको हिन्दुओंकी दुर्बलता और मुसलमानोंकी प्रबलता समझानेका प्रयत्न किया । ऐतिहासिक उदाहरणों के साथ साथ उन्होंने अनेक नीतियुक्त बातें कहीं जिनका सारांश यह था कि मुग़लोसे विरोध करना एक बड़ी भारी भूल है और आप अपनी मृत्युको बुलाना है। फिर मुगलोंसे लड़ना मानों ईश्वरकी इच्छाका विरोध करना है। जब ईश्वरने भारतके शासनका भार उनके हाथमें दिया है तो उनमें कुछ असाधारण गुण तो अवश्य ही होंगे। यदि हम लोग स्वराज्यकी योग्यता रखते तो विजित दशाको प्राप्त ही क्यों होते ?-इत्यादि; इसी प्रकारके कई तों द्वारा सुजानरायजीने छत्रसालके चित्तको फेरना चाहा;
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