________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२२
महाराज छत्रसाल ।
-
रावजी मुग़लोंके हाथमें पड़ जायेंगे और इनका सारा जीवनसंग्राम व्यर्थ हो जायगा। यह सोचते ही उस वीर पत्नीने अपनी पिस्तौल निकाल कर रावजीको मार दिया और दूसरी गोली अपनेको मार कर पतिप्राणा महिषी पतिदेवके साथ स्वर्गलोकको प्रयाण कर गयी। शत्रु लोग देखते ही रह गये ! धन्य हैं ये वीर रमणियाँ जो इस देशकी एक मात्र प्राणदात्री यशस्करा आधारभूता देवियाँ हैं !
राव चम्पतकी मृत्युसे कुछ कालके लिये स्वातंत्र्यका सूर्य डूब गया और मुग़ल राज्यकी कीर्ति जो साम्राज्यके इस प्रदेशमें कुछ धुंधली हो चली थी, फिर पूर्ववत् उज्ज्वल हो गयी। ओरछावालोको इस सच्चे देशहितैषी महावीरके मरनेसे क्या मिला, यह तो कहना कठिन है; सम्भव है कि उनको भी वैसा ही परिताप हुआ हो जैसा कि पृथ्विराजकी मृत्युके कुछ काल पीछे जयचन्द्रको भुगतना पड़ा; परन्तु उस समय तो उनका मनोरथ सिद्ध हो गया। उनका प्रबल विरोधी मारा गया और उसके सब अनुयायी हतोत्साह हो कर इधर उधर भाग निकले। इससे अधिक उनको चाहिये हो क्या था? परन्तु महाराज पहाड़सिंह और उनके अनुमन्तागण इस अटल वाक्यको भूल गये कि,
यतो धर्मस्ततो जयः। परमात्मा आप सत्याग्रही पुरुषोंका साथ देता है और
* यह घटना संवत् १७२१ (१) सन् १६६४के लगभग हुई । एक मतके अनुसार चम्पत रायजीकी मृत्यु संवत् १७१४ (सन् १६५७)में हुई । इनकी मृत्युके सम्बन्धमें एक कथन यह भी है कि इन्होंने मुग़लोंके हाथमें पड़ जाने के डरसे रुग्णावस्थामें आत्महत्या कर ली।
For Private And Personal