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चम्पत राय ।
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ली और चम्पत राय फिर निराश्रय हो गये । *
दिल्लीसे निकल कर इनकोफिर जङ्गलोकी शरण लेनी पड़ी। ओरछावालोको इसमें खूब बन पायी । उन्होंने दिल खोल कर इन्हें दुःख देना प्रारम्भ किया और मुसलमानी सहायता पा कर उनका उत्साह और भी द्विगुण होगया। इधर मुसलमानोंको पहाड़सिंहकी सहायतासे बड़ा लाभ पहुँचा। दुःख और श्रापत्ति में साथी कम ही मिलते हैं। धीरे धीरे चम्पत रायका दल क्षीण हो गया। सिवाय थोड़ेसे दृढ़ प्रतिक्ष वीर पुरुषोंके और लोग क्रमशः अलग हो गये। __इसी अवसरमें इनका किशोरवयस्क वीर पुत्र शालिवाहन कई यवनोंसे घिर कर मारा गया । इस पुत्रसे इनको बहुत कुछ प्राशाएँ थीं; क्योंकि छोटी अवस्थामें ही इसने अपूर्व उत्साह, युद्ध कौशल और शीलका परिचय दिया था। इसकी मृत्युसे न केवल उसके मातापिताको शोक हुआ, प्रत्युत् समस्त बुन्देलखण्डके देशप्रेमियोंकी पाशाप्रोपर पानी फिर गया। उस समय ऐसा कोई पुरुष नहीं देख पड़ता था जो कि राव चम्पतके प्रारम्भ किये हुए कार्यको सफलतापूर्वक समाप्त कर सके । निराशाने और घोर रूप धारण कर लिया।
इसके कुछ काल पीछे संवत् १७०६ में मोरपहाड़ीके जगलमें रानीने एक पुत्र प्रसव किया। ये ही हमारे चरित्र
* इसके सम्बन्धमें एक और भी ऐतिहासिक सिद्धान्त है । इन्होंने अफगानों के विरुद्ध ऐसी बीरता दिखायी थी कि दाराको इनसे द्वेष हो गया। तब इन्होंने औरंगजेबका साथ दिया, और उससे बहुतसी जागीर पायी। पर इनके दिल्ली न रहनेसे रुष्ट होकर उसने जागीर जब्त कर ली।
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