Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बुन्देलखण्डका संक्षिप्त इतिहास । मेरी समझमें यह कदापि युक्ति-सङ्गत नहीं है। छल करना कोई अच्छी बात नहीं है; परन्तु ऐसा कदाचित् ही कोई प्रसिद्ध राजपूत वंश होगा जिसमें ऐसा कलङ्क न लगा हो । प्रायः सब ही जातियोंने कभी न कभी इस नीच परिपाटीका आश्रय लिया है। विवाहके सम्बन्धमें भी इन्होंने कोई बड़ा भारी पाप नहीं किया। वाग्दान पूर्ण विवाह नहीं है । यदि वाग्दान देकर तोड़नेसे इन्होंने कोई पाप किया तो सैकड़ों राजपूत रमणियोंके सतीत्वकी रक्षा भी इनके ही द्वारा हुई । अधिकसे अधिक दण्ड यह हो सकता था कि इसमें किसी प्रकारका प्रायश्चित करा लिया जाता। यदि जातिच्युतिका और कोई कारण नहीं है तो इनके साथ घोर अन्याय किया गया है। पिताके परलोकगामी होनेपर सहनपाल महोनीकी गहीपर बैठे। सृष्टीय सन् १२६६ और १५०१ ( संवत् १३२६ और १५५८)-के बीचमें अर्थात् २३२ वर्षमें आठ राजा हुए जो धीरे धीरे बुंदेलोंके बलको बढ़ाते गये, यहाँतक कि बुंदेलखण्डका अधिकांश राज्य इनके अधिकारमें आगया। - सहनपालसे सातवीं पीढ़ीमें मलखान हुए जिन्होंने ओरछाको राजधानी बनाया । इनके पुत्र रुद्रप्रताप संवत् १५५८ (सन् १५०१)-में गद्दीपर बैठे । ये यथानाम बड़े वीर और पराक्रमी पुरुष थे । इनको कई बार बहलोल और सिकन्दर लोदीका सामना करना पड़ा । परन्तु राज्यकी वृद्धि होती ही गयी और जबकि लोदी वंशको परास्त करके बाबरने भारतपर अपना शासन बैठाना प्रारम्भ किया उस समयकी अराजकतासे इन्होंने बहुत ही लाभ उठाया । संवत् २५० (सन् १५३१ )-में इन्होंने स्वर्गारोहण किया। For Private And Personal

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