Book Title: Maharaj Chatrasal
Author(s): Sampurnanand
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १२ महाराज छत्रसाल । क्षत्रियोंकी वृद्धि इस प्रकार बैठकर सन्तोष करनेसे नहीं होती। क्षत्रियका यह कर्तव्य है कि वह धर्मकी मर्यादाको रखता हुआ ऐसी युक्तिका अवलम्बन करे जिसके द्वारा उसकी और राष्ट्र की उन्नति हो। उस अशान्तिके कालमें सिवाय शस्त्र धारण करनेके और कोई अर्थ-करी युक्ति न थी और शस्त्र धारण करनेपर भी जितना लाभ लूट मार करनेमें था उतना,साधारण राजसेवामें न था। इसी सरल प्रथाका अनुकरण राव चम्पतने थोड़ी ही वयस्से किया। कुछ अधिक सेना तो इनके पास थी नहीं, दस पाँच साथियोंका दल बनाकर इन्होंने पहिले अपना कार्य प्रारम्भ किया। इसमें एक सुभीता यह था कि ये अपना काम शीघ्र समाप्त कर सकते और पीछा किये जानेपर सुरक्षित स्थानोको सुगमतासे भाग सकते थे। थोड़े साथी होनेसे भेद भी छिपा रह सकता था। ___पहिले पहिले ये लोग ओरछा राज्यमें ही राजधानीसे दूर स्थलों में, जहाँ रक्षाका प्रबन्ध स्वभावतः कम था,डाका मारते थे। ज्यों ज्यों इनको सफलता प्राप्त होती गयी और इनकी आयको वृद्धि होती गयी इनकादल बढ़तागया । चम्पत रायके पराक्रमका समाचार सुन सुन कर अनेक उत्साही युवक इनके दलमें सम्मिलित होने लगे। धीरे धीरे इनका कार्यक्षेत्र भी विस्तृत हो गया यद्यपि अब भी वह ओरछा राज्यकी ही सीमाके भीतर घिरा हुआ था। अभीतक राव चम्पतके कामोंमें जातीयताका कोई लेश नहीं था। जो कुछ ये कर रहे थे, सब स्वार्थसिद्धिके लिये। इनके लूट मारसे भी इनके देशभाइयों, सजातियों और सहधम्मियोंकी ही विशेष कर हानि हुई थी। For Private And Personal

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