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महाकछि पुष्पवंत कृत महापुराण से सीता वन में नहीं है। यदि वह जीवित है (हिंसक पशु यदि उन्हें नहीं खा गया हो) तो यह आपका प्रबल पूण्य माना जाएगा। राम मूठित होकर धरती पर गिर पड़ते हैं। उपचार के बाद होश में आने पर सीता के बिना उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। वह वन्य प्राणियों और पेड़-पौधों से सीता के बारे में पूछते हैं । खोज करने वाले अनुचरों को वांस पर टेगा सीता का उत्तरीय मिलता है, जिसे लाकर वे राम को देते हैं। राम उसे छाती से लगाते हैं और अपनी आँखें पौंछते हैं 1 दशरथ के स्वप्नदर्शन से यह मालम होने पर कि सीता का अपहरण रावण ने किया है, भरत और शान भी उनकी सहायता के लिए वहां पहुंचते हैं।
राम का दूत बनकर गए हुए हनुमान् सीता से राम के बारे में कहते हैं: वह तुम्हारे वियोग में दबसे हो गए हैं। वे प्रतिदिन आपकी याद करते हैं। वह न तो बोलते हैं और न किसी चीज में उनका मन रमता है। वह किसी स्त्री को देखते नहीं। तुम्हारा ध्यान वह उसी तरह करते हैं जैसे योगीश्वर शाश्वत सिद्धि का 1 हनुमान् राम और सीता के मिलन की अंतरंग पहवान बताते हैं। उससे स्पष्ट है कि दोनों में एक दूसरे के प्रति प्रगाव प्रेम पा । हनुमान् जब सीता की कुशलवार्ता लेकर आते हैं तो देखते हैं कि दुर्ग के भीतर राम 'हा सीते, हा सीते चिल्ला रहे हैं और अपनी छाती पीट रहे हैं
"हा सीप सीय सकलुण कमंतु
णिय करयलेप कर सिक हर्मत" हनुमान् को देखकर वह पूछते हैं---"क्या मेरे बिना, मूछित होकर स्पक्त प्राण वह गिरी पड़ी है या मृत्यु को प्राप्त हो गई है ? वह कुशलबार्ता लाने वाले हनुमान का प्रगाढ़ आलिंगन करते हैं। पंचांग-मंत्रणा के बाव, राम एक बार फिर हनुमान को दूत बनाकर भेजते हैं। रावण की चुनोती स्वीकार कर राम लंका पर पढ़ाई के लिए प्रस्थान करते हैं। विभीषण के मिलने पर राम कहते हैं कि यदि चित्त से चिप्स मिल जाय तो पराया भी भाई के समान हिसकारी है । इसके विपरीत भाई यदि नित्य र बढ़ाता है तो वह दुश्मन है। युद्ध में रावण माया के बल से सीता के सिर को काटकर राम के सामने डालता है। राम सीता को मरा हबा जानकर मूछित हो जाते हैं। कठिनाई से होश में आते हैं। सक्ष्मण के द्वारा रावण के मारे जाने पर, आनन्द से उद्वेलित राम रोमांचित हो उठते हैं। वे लोगों की मनोकामनाबों को पूरा करते हैं। कवि कहता है कि राम के समान कोई नहीं है जिन्होंने रावण की मृत्यु होने पर विभीषण को राज्य दिया और सुधियों तथा सुभटों का प्रतिपालन किया।
पुष्पपन्त की रामायण में सीता के अपहरण या रावण के नन्दनवन में रहने के कारण लोक में कोई सुरसुरी नहीं उत्पम्न होती। और, न स्वयं राम के मन में इस बात को लेकर उथल-पुथल है कि रावण ने सीता का अपहरण किया । बल्कि राम के आवेश से अंगद हनुमान आदि अशोक बन में जाफर सीतादेवी की प्रशंसा कर केवाव की विजय की सूचना देते हैं और उन्हें से आते हैं। सीता राम से मिलती है। कवि उपमाएं है
"माणिय मिलिय रेवि बलबउ, अमरतरंगिषिणाइ समुवः। हेमसिवि णावइ रसिमड, केवलणागरिद्धि गं मुहर विग्यवाणि मागिय परमत्यद, वर-काइमहणं पंडियसस्थाह। चितसृद्धि में चारुमुणिवह, पं संपुष्णकति छणयवहू । में वर मोक्खालग्छि अरहंतह, बगुगसंपय पं गुणवंतह। 78/27