Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
प्रेमियों की सेवा में समर्पित की। कवि ने 'नेमीश्वररास' के अन्त में विद्वानों से विनय पूर्वक इतना अवश्य निवेदन किया कि जैसी उसकी बुद्धि थी उसी के अनुसार उसने ग्रन्थ रचना की है इसलिये पंडितजन यदि कहीं त्रुटि हो तो उसके लिये क्षमा करें।
'नमीश्वररास' काव्य कृति का अच्छा स्वागत हा तथा कवि से इस बार की दूसरी रचना निबद्ध करने के लिये चारों ओर से प्राग्रह किया जाने लगा। एक ओर कवि का काव्य रचना के प्रति उत्साह, दूसरी और जनता का प्राग्रह, इन दोमों के कारण ६ महिने पश्चात् ही वैशाख कृष्णा नवमी शानिवार के शुभ दिन कवि ने "हनुमन्त कथा" को छन्दोबद्ध करके दुसरी काव्य रचना करने का गौरव प्राप्त किया ।१६ हनुमन्त कथा एक वृहद रचना है। इसमें कवि ने हनुमान की जीवन गाथा को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। काव्य के रचना स्थान बाला पद कवि सम्भवतः देना मूल गये या फिर इसे भी झंझनु नगर में ही कविता बद्ध करने के कारण नगर का नाम दुबारा नहीं दिया । उक्त दोनों रचनामों से कवि की कोति चारों घोर फैल गयी और श्रावक गण उन्हें अपने यहां सादर आमन्त्रित करने लगे। इसके पश्चात् ८-९ वर्ष के दीर्घकाल तक कपि की कोई बड़ी रचना उपलब्ध नहीं होती । जिन लघु रचनाओं में संवत् नही दिया हुअा है हो सकता है उनमें से अधिकांश रचनाएं इसी समय की हों।
संवत् १६२५ में कवि का सांभर नगर में बिहार होने का उल्लेख "ज्येष्ठ जिनवर कथा" की प्रशस्ति से मिलता है। प्रस्तुत कृति सांभर प्रवास में ही निबद्ध की गयी थी। यह एक लघु कृति है जिसमें प्रादिनाथ के जीवन पर प्रकाश डाला गया है । इसकी एक मात्र प्रति अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार के एक गूटके में संग्रहीत है ।'७ सांभर नगर में कवि ने जिरणलाडू गीत का और निर्माण किया । यह रचना भी छोटी है जिसमें केवल १७ पद्य हैं ।१६
उक्त संवतोल्लेखवाली तृतीय रचना समाप्ति के पश्चात् कवि का सांभर से विहार हो गया और वे मारवाड़ के अंचल में बिहार करने लगे | नागौर की भट्टारक गादी से सम्बन्ध होने के कारण वे इस प्रदेश को कैसे भुला सकते थे। यद्यपि ब्रह्म रायमल्ल स्वाभिमानी सन्त थे और भट्टारकों के पूर्णत: अधीन नहीं रहना चाहते थे फिर भी उन्होंने शाकम्भरी प्रदेश एवं नागौर प्रदेश को अपने उपदेशों से पावन किया और संवत् १६२८ में के हरसोरगढ़ पहुंच गये जो नागौर प्रदेश का प्रमुख नगर था ।
१७. देखिये राजस्थान के जन शास्त्र भण्डारों को अन्य सूची पंचम भाग, पृष्ठ सं.६४५ १८. देखिये राजस्थान के जन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची तृतीय भाग,
पृष्ठ सं. ११७