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महाधे अणुभागबंधाहियारे
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३१२. जहण्णए पग० । तत्थ इमं अट्ठपदं मूलपगदिभंगो । एदेण अट्ठपदेण दुवि० घे० दे० | ओघे० सादासाद० - तिरिक्खा उ०- मणुस ० चदुजादि - छस्संठा०छस्संघ० - मणुसाणु ० -- दो विहा० - थावरादि ० ४ - थिरादिछयु ०[०-- उच्चा० ज० अज० अत्थि बंगा य अबंधगा । सेसाणं पगदीणं ज० अज० उकस्सभंगो । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि - ओरालिय० - ओरालियमि० - कम्मइ० -- णवंस ० - कोधादि०४मदि० - सुद० - असंज० - अचक्खु०-- तिण्णिले ० - भवसि ० - अन्भवसि ० - मिच्छा० - असण्णि ०. आहार -प्रणाहारए ति ।
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३१३. एइंदिय - बादरएइंदिय-पज्जत्त मणुसाउ० - तिरिक्खगदितिगं ओघं । सेसाणं ज० अज० अत्थि बंधगा य अबंधगा य । बादर एवं दिय अपज्ज० सव्वसुहुमाणं बादरचदुक्काय पज्जत्तगाणं सव्ववणफदि -- बादरपत्तेयअपज्जत्त० - सव्वणियोद० मणुसाउ० ओघं । सेसाणं ज० अज० अत्थिं बंध० अबंध० । पुढवि० आउ० तेउ०- वाउ०- बादरपत्ते' ० -- बादरपुढवि० - आउ०- तेउ० [ वाउ० ] धुविगाणं पसत्थापसत्याणं केसिं च परियत्तिीणं च मणुसाउ० ज० अज० उक्कस्सभंगो। सेसाणं ज० अज० अत्थि बंधगा
बाद प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों में सब प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है ।
इस प्रकार उत्कृष्ट समाप्त हुआ ।
३१२ जघन्यका प्रकरण है। उसके विषय में यह अर्थपद मूल प्रकृतिके समान है । इस अर्थ - पदके अनुसार दो प्रकारका निर्देश है-ओघ और आदेश । श्रघसे सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चायु, मनुष्यगति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर आदि छह युगल और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धके बन्धक जीव हैं और अबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका
उत्कृष्ट समान है । इसी प्रकार ओधके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, श्रदारिक काययोगी, औदारिकमिश्रकाय योगी, कार्मण काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचतुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए ।
३१३. एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों में मनुष्यायु और तिर्यञ्च - गतित्रिका भङ्ग के समान है । शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीव हैं और अबन्धक जीव हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सब सूक्ष्म, बादर चार कायवाले अपर्याप्त सब वनस्पतिकायिक, बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक अपर्याप्त और सब निगोद जीवोंमें मनुष्यायुका भङ्ग के समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीव हैं और अबन्धक जीव हैं । पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक वायुकायिक, बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बाद वायुकायिक जीवोंमें प्रशस्त और अप्रशस्त ध्रुवबन्धवाली, कितनी ही परावर्तमान प्रकृतियाँ और मनुष्यायुके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । शेष प्रकृतियों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीव हैं और अबन्धक जीव हैं ।
१. भा० प्रतौ श्रज्ज० पत्थि इति पाठः । २. श्रा० प्रतौ तेउ० बादरपते ० इति पाठः ।
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