Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 383
________________ ३७४ महाबंचे अणुभागबंधाहियारे अणु० असं ० गुणही ० । णिद्दा० असं ० गुणही ० । पयला० असं० गु०ही । 1 1 ६३०. सव्वबहूणि' सादस्स अणुभागबंध० । असादा० अणुभा० असं ० गुणही० । ६३१. सव्वबहूणि मिच्छ० अणुभागबं० । अणंताणुबं० लोमे अणुभा० असं०गुणही ० । माया० विसे० । कोधे बिसे० । माणे विसे० । संजलणलोमे असं ० गुणही ० । माया० विसे० । कोघे विसे० | माणे विसे० । पच्चक्खाण० लोभे अणु० असं०गुणही ० | माया ० विसे० । कोधे विसे० । माणे विसे० । अपच्चक्खाणलोभे अणु ० असं० गुणही ० । माया ० विसे० । कोधे० विसे० | माणे विसे० । णवुंस० असं० गु० | अरदि० असंखें ० गु० । सोग० असं० गु० । भय० असं० गु० । दुगुं० असं० गु० । इथि० असं० गु० | पुरिस० असं ० गु० । रदि० असं० गु० | हस्स० असं० गु० । हैं । इनसे प्रचलाप्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे निद्रा के अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे प्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । ६३०. सातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत हैं । इनसे असातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । ६३१. मिथ्यात्वके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान सबसे बहुत हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष हीन हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी क्रोधमें विशेष हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी मानमें विशेष हीन हैं । इनसे संज्वलन लोभमें अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे संज्वलनमाया में अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान विशेष हीन हैं । इनसे संज्वलन क्रोधमें अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे संज्वलनमानमें अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इनसे प्रत्याख्यानावरण लोभमें अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे होन हैं । इनसे प्रत्याख्यानावरण मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इनसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरणमानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष होन हैं । इनसे अप्रत्याख्यानावरण लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अप्रत्याख्यानावरण मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष होन हैं। इनसे अप्रत्याख्यानावरण मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे नपुंसकवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान भसंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे अरतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे शोकके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे भयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे जुगुप्साके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे स्त्रीवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे पुरुषवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे रतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे हास्यके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । 1 १. आ. प्रतौ णिद्दा० असं ० गुणही ० । सव्वबहूणि इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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