Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 388
________________ ३७९ पयडिसमुदाहारो ओधिदं०-लाभंत० तिणि वि तु० असं०गु० । मणपज.दाणंत० दो वि तु० असं०गु० । थीणगि० विसे । णवूस० असं०गु० । इत्थि० असं०गु० । पुरिस० असं०गु० । अरदि० असं०गु० । सोग० असं०गु० । भय० असं०गु० । दुगुं० असं०गु० । णिद्दाणिद्दा० असं०गु० । पयलापयला० असं०गु० । णिद्दा० असं०गु०। पयला० असं०गु० । णीचा. असं०गु०। अजस० विसेसही। णिरयग० असं०गु० । तिरिक्खग० असं०गु० । रदि० असं०गु० । हस्स० असं०गु० । देवाउ० असं०गु० । णिरयाउ० असं०गु० । मणुसाउ० असं०गु० । तिरिक्खाउ० असं गुः । एवं ओघमंगो पंचिं०-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-इत्थि०-पुरिस०-णवंस०-कोधादि०४-चक्खु०-अचक्खु०-भवसि०-सण्णि-आहारए त्ति । ६३८. आदेसेण णिरयगदीए सव्वबहूणि साद० । जस०- उच्चा० असं०गु० । मणुस. असं०गु० । कम्म० असं०गु० । तेजा० असं०गु० । ओरा० असं०गु० । वरण और लाभान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान तीनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनःपर्ययज्ञानावरण और दानान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे स्त्यानगृद्धिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे नपुंसकवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे स्त्रीवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे पुरुषवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अरतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे शोकके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे भयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे जुगुप्साके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे निद्रानिद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रचलाप्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे निद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे नीचगोत्रके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अयशःकीर्तिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे नरकगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे तिर्यञ्चगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे रतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे हास्यके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगणे हीन हैं। इनसे देवायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे नरकायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे मनुष्यायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे तिर्यञ्चायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इसी प्रकार ओघके समान पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार करायवाले, चक्षदर्शनी, अचक्षदर्शनी, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । ६३८. आदेशसे नरकगतिमें सातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत हैं। इनसे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनुष्यगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे कार्मणशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे तैजसशरीरके अनुभागबन्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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