Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 423
________________ ४१४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे विसेसाधिया विसेसाधिया याव यवमज्झ त्ति । तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा याव उक्कस्सिए अज्झवसाणट्ठाणे त्ति । ६६८. परंपरोवणिधाए जहण्णए अज्झवसाणट्ठाणे जीवेहिंतो तदो असंखेंजा लोगा गंतूण दुगुणवड्डिदा । एवं दुगुणवड्डिदा दुगुणवड्डिदा याव यवमझं । तेण परं असंखेंजा लोगं गंतूण दुगुणहीणा । एवं दुगुणहीणा दुगुणहीणा याव उक्कस्सअज्झवसाणट्ठाणं ति। ६६९. एयजीवअज्झवसाणदुगुणवड्डि-हाणिहाणंतरं असंखेंजा लोगा। णाणाजीवअज्झवसाणदुगुणवड्डि-हाणिहाणंतराणि आवलि. असंखें। णाणाजीवेहि दुगुणवत्रिहाणि थोवाणि । एयजीवअज्झवसाणदुगुणवड्डि-हाणिहाणंतराणि असंखेंजगुणाणि । ६७०. यवमज्झपरूवणदाए द्वाणाणं असंखेजदिभागे यवमझं । यवमज्झस्स हेट्ठादो हाणाणि थोवाणि । उवरि हाणाणि असंखेंजगुणाणि। ६७१. फोसणपरूवणदाए तीदे काले एयजीवेण उक्कस्सए अज्झवसाणट्ठाणे फोसणकालो थोवो। जहण्णए अज्झवसाणहाणे फोसणकालो असंखेजगुणं । कंडयस्स फोसणकालो तत्तियो चेव । यवमज्झे फोसणकालो असंखेंजगुणं । कंडयस्स उवरिं फोसणकालो असंखेंजगुणं । यवमज्झस्स उवरिं कंडयस्स हेहदो फोसणकालो असंखेंजगुणं । कंडयस्स उवरिं यवमज्झस्स हेहदो फोसणकालो तत्तियो चेव । यवमज्झस्सुवरि फोसणकालो विसेसाधिओ। कंड यस्स हेट्ठदो फोसणकालो विसेसाधियो। कंडयस्सुवरिं फोसणकालो विसेसाधियो । सव्वेसु वि ठाणेसु फोसणकालो विसेसाधिओ। अधिक हैं । इससे आगे उत्कृष्ट अध्यवसानस्थानके प्राप्त होने तक जीव विशेष हीन, विशेष हीन हैं। ६६८. परम्परोपनिधाकी अपेक्षा जघन्य अध्यवसानस्थानमें जो जीव हैं,उससे असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाने पर वे दूने होते हैं। इस प्रकार यवमध्यके प्राप्त होने तक दूने-दूने जीव होते हैं । उससे असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर वे द्विगुणहीन होते हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट अध्यवसानस्थानके प्राप्त होने तक वे द्विगुणहीन द्विगुणहीन होते हैं। ६६९. एकजीवअध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यात लोकप्रमाण हैं। नानाजीवअध्यवसानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। नानाजीवअध्यवसानस्थानद्विगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर स्तोक हैं । इनसे एकजीवअध्यवसानद्विगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर प्रत्येक असंख्यात ६७७. यवमध्यप्ररूपणाकी अपेक्षा स्थानोंके असंख्यातवें भाग जाकर यवमध्य होता है। यवमध्यके अधस्तन स्थान स्तोक हैं और उपरिम स्थान असंख्यातगुणे हैं। ६७१. स्पर्शनप्ररूपणाकी अपेक्षा अतीत कालमें एक जीवका उत्कृष्ट अध्यवसानस्थानमें स्पर्शनकाल स्तोक है। इससे जघन्य अध्यवसानस्थानमें स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है । काण्डक का स्पर्शनकाल उतना ही है। इससे यवमध्यमें स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है । इससे काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है। इससे यवमध्यके ऊपर और काण्डकसे नीचे स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है। इससे काण्डकके ऊपर और यवमध्यसे नीचे स्पर्शनकाल उतना ही है । इससे यवमध्यके ऊपर स्पर्शनकाल विशेष अधिक है । इससे काण्डकके नीचे स्पर्शनकाल विशेष अधिक है। इससे काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल विशेष अधिक है। इससे सब स्थानोंमें स्पर्शन काल विशेष अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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