Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 393
________________ ३८४ महाबंधे भणुभागबंधाहियारे असं० । अरदि० असं० । सोग० असं० । भय० असं० । दुगुं. असं० । णिद्दाणिद्दा० असं० । पयलापयला० असं० । णिहा० असं० । पयला. असं० । अजस०-णीचा० दो वि तु० असं० । तिरिक्ख० असं० । रदि० असं० । हस्स० असं० । मणुसग० असं० । ओरा० असं० । मणुसाउ० असं० । तिरिक्खाउ० असं० । एवं मणुसअपजत्तसन्चएइंदि०-सव्वविगलिं० -पंचिं०-तस०अपज०-पंचकायणं च । णवरि एइंदिए तेउ०वाउ० णाणत्तं । णीचा. बहुगाणि । अजस० विसेसही० । एवं णाणत्तं । ६४१. ओरालियका० मणुसगदिमंगो। ओरा०मि० सव्यबहूणि साद० । जस०उच्चा० असं० । देवग० असं० । कम्म० असं० । तेजा. असं० । वेउवि० असं० । मिच्छ० असं० । सेसासु० णवरि पंचिंदियतिरिक्खभंगो । एत्तियाओ अस्थि । परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे स्त्यानागृद्धिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे नपुंसकवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे स्त्रीवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे पुरुषवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अरतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगणे हीन हैं। इनसे शोकके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगणे हीन है। इनसे भयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे जुगुप्साके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे निद्रानिद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे प्रचलाप्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे निद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे प्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अयशःकीर्ति और नीचगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान दोनों ही परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणे हीन है। इनसे तिर्यश्चगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे रतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे हास्यके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे मनुष्यगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे औदारिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनुष्यायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुण हीन है। इनसे तिर्यश्चायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, बस अपर्याप्त और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय, अग्निकायिक और वायकायिक जीवोंमें नानात्व है। अर्थात् इनमें नीचगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान बहुत है। इनसे अयशःकीर्तिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है । इस प्रकार नानात्व है। ६४१. औदारिककायोगी जीवोंमें मनुष्योंके समान भङ्ग है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत है। इनसे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे देवगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे कार्मणशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थोन असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे तैजसशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे वैक्रियिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे मिथ्यात्वके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। आगे शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। इस प्रकार अल्पबहुत्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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