Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 409
________________ महाबँधे अणुभागबंधाहियारे I ६६०. एत्तो सादस्स तिव्वमंदं वत्तहस्सामा । तं जहा - सादस्स उक्कस्स० हिदीए जहणपदे जहण्णाणुभागो थोवो । समऊणार ट्ठिदीए जह० अणु० तत्तियो चैव । बिसमऊ० दीए जह० अणु० तत्तियो चैव । तिसमऊ० द्विदी० जहण्णाणु० तत्तियो चेव । एवं याव जहण्णगो असादबंध समाणो ति ताव तत्तियो चेव । तदो जहण्णगादो असादधादो या समऊणा ट्ठिदी तिस्से द्विदीए जहण्णाणुभागो अनंतगु० । विसमऊ० ४०० ० जह० अ० अनंतगु० । तिसमऊ ० हिदी० जह० अणु० अनंतगु० । एदेण कमेण जहणगा असादबंधसमाणसादबंधगाणं आदि काढूण असंखेंज्जाओ द्विदीओ णिव्वग्गणकंडयस्स असंखेज्जदिभागो एत्तियमेत्तीओ ट्ठिदीओ तासिं जहण्णाणुभागो अतगुणा सेढी दव्वा । तदो णियत्तिदव्वं सादस्स उक्कस्सियाए द्विदीए उक्कस्सपदे उक्क० अणुभा० अनंतगुणो । समऊ० ट्ठिदी० उक्क० अणु० अनंतगु० । विसमऊ ० हिदी • उक्क० अणु० अनंतगु० । तिसमऊ० ट्ठिदी० उक० अणु० अणंतगु० । एवं णिरंतरं उक्कसयं आदि काढूण असंखेज्जाओ द्विदीओ ऍत्तियमेंत्तं णिव्वग्गणकंडयं तत्तिय ० स्थितियों में जघन्य अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुणा है । फिर पल्यके असंख्यातवें भागके अन्तमें जो स्थिति विकल्प है, उसके जघन्य अनुभागसे जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । फिर इससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंके आगेकी स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । फिर इससे जघन्य स्थितिसे आगेकी द्वितीय स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा । फिर इससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंके आगेकी दूसरी स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । फिर इससे जघन्य स्थिति से आगेकी तीसरी स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। फिर इससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंसे आगेकी तीसरी स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार इसी क्रमसे उत्कृष्ट स्थिति तक अनुभागका क्रम जानना चाहिए। मात्र जहाँ उत्कृष्ट स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा प्राप्त होता है, वहाँ इससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण पूर्वकी स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है और आगे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंमें पूर्व - पूर्व स्थितिके उत्कृष्ट अनुभागसे आगे-आगेकी स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है । ६६०. आगे सातावेदनीयके तीव्र-मन्दको बतलाते हैं । यथा - सातावेदनीय की उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग स्तोक है। एक समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है । दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है। तीन समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग उतना ही है। इस प्रकार जघन्य असातावेदनीयके बन्धके समान स्थिति प्राप्त होने तक उतना ही अनुभाग है । अनन्तर जघन्य असातावेदनीयके बन्धसे जो एक समय कम स्थिति है, उस स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे दो समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे तीन समय कम स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा । इस क्रमसे असातावेदनीयके बन्धके समान सातावेदनीयके बन्धकोंसे लेकर असंख्यात स्थितियाँ, जो कि निर्वर्गणाकाण्डकके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं, इतनीमात्र उन स्थितियोंका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए। इसके बाद लौटकर सातावेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे एक समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे दो समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे तीन समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार निरन्तर उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर निर्वर्गणा काण्डक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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