Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 399
________________ ३९० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे साणट्टाणाणि । विदियाए कसाउदयद्वाणे असंखैज्जा' लोगा अणुभागबंधज्झवसाणाणाणि । तदिए कसाउदयद्वाणे असंखेजा लोगा अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणाणि । एवं असंखेजा लोगा असंखैजा लोगा याव उक्कस्सिया कसाउदयट्ठाणं ति । एवं अप्पसत्थाणं सव्वपगदीणं । सादस्स उक्कस्सए कसाउदयट्ठाणे असंखेजार लोगा अणुभाग० । समऊणाए कसाउदट्ठाणे असंखेजा लोगा अणुभा० । विसमऊणाए साउदट्ठाणे असंखेजा लोग़ा अणुभा० । तिसमऊणाए कसाउदयड्डाणे असंखेजा लोगा अणुभा० । एवं असंखेजा लोगा असंखेज्जा लोगा याव जहण्णियं कसाउदयद्वाणं ति । एवं सव्वासिं पसत्थाणं पगदीणं । एवं एदेण बीजेण कसाउदयट्ठाणाणि याव अणाहार दिव्वं । ६५०. तेसिं दुविधा परूवणा - अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा च । अणंतरोवणिधाए सव्वासिं [ अ ] पसत्थपगदीणं णिरयाउगवजाणं सव्वत्थोवा जहण्णियाए द्विदीए जहण कसाउदाणे अणुभागबंधज्झवसाणडागाणि । जह० द्विदीए विदियकसाउदय ० ३ विसेसाधियाणि । जह० ट्ठिदीए तदिए कसाउदय ० विसेसाधियाणि । एवं विसे ०. विसे० याव जहण्णिया० द्विदीए उकस्सयं कसाउदयद्वाणं ति । एवं याव उक्कस्सियाए हिदीए उक्कस्सियं कसाउदयद्वाणं ति । सव्वपसत्थाणं पगदीणं तिष्णि 3 स्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं। तीसरे कषाय उदयस्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं । इस प्रकार सब अप्रशस्त प्रकृतियोंके जानना चाहिए । सातावेदनीयके उत्कृष्ट कषायउदयस्थान में असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते है । एक समय कम कषाय उदयस्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं । दो समय कम कषाय उदयस्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं। तीन समय कम कषाय उदयस्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान होते हैं। इस प्रकार जघन्य कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थानमें असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं । इसी प्रकार सब प्रशस्त प्रकृतियोंके विषयमें जानना चाहिए । इस प्रकार इस बीजपदके अनुसार अनाहारकमार्गणा तक कषायउदयस्थान जानने चाहिए । ६५०. इनकी प्ररूपणा दो प्रकारकी है-अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा । अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा नरकायुको छोड़कर सब अप्रशस्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके जघन्य कषाय उदयस्थानमें अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान सबसे थोड़े होते हैं । इनसे जघन्य स्थितिके दूसरे कषाय उदयस्थानमें वे विशेष अधिक होते हैं । इनसे जघन्य स्थिति के तीसरे काय उदयस्थानमें वे विशेष अधिक होते हैं । इस प्रकार जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक वे विशेष अधिक विशेष अधिक होते हैं। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट कषाय उदयस्थानके प्राप्त होने तक जानना चाहिए। तीन आयुओंको छोड़ कर सव प्रशस्त १. ता० प्रतौ विदियाएं उक्कस्सट्ठाणे असंखेजा इति पाठः । २. ता० प्रतौ कसा उदयट्ठाणाणि असंखेजा इति पाठः । ३. आ० प्रतौ जह० विदियकसाउदय० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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