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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ३५१. पंचिंदिय०तिरिक्ख०३ पंचणा०---णवदंस०-सादासाद०---मिच्छ... सोलसक०-पंचणोक०-तेजा०-क०-हुंडसंठा--पसत्थापसत्थ०४-अगु०४-पज्जत्त-'पत्तेथिराथिर-सुभासुभ-दूभग-अणादें--अजस०--णिमि०-णीचा०-पंचंत० उ० छ० । अणु० लो० असं० सव्वलो० । इत्थि० उ० खेत्तभंगो । अणु० दिवडचौँ । पुरिस० उ. खेत । अणु० छच्चो' । हस्स-रदि-तिरि० एइंदि०-तिरिक्वाणु०-थावरादि०४ उ० अणु० लो० असं० सव्वलो० । चदुआउ०-मणुसग०-तिण्णिजादि-चदुसंठा-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०-आदाव० उ० अणु० खेत्तभंगो । दोगदि-समचदु०-दोआणु०दोविहा०-सुभग-दोसर-आदे०-उच्चा० उ० अणु० छ०।पंचिं०-वेव्वि०-वेउन्वि०अंगो०तस० उ० छ । अणु० बारस। ओरालि० उ० खेत० । अणु० लो० असं० सव्वलो० । इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक कहा है । जो नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके नरकगतिद्विकका और जो देवोंमें मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके देवगतिद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागवन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम छहबटे चौदह राजु स्पर्शन कहा है। वैक्रियिकद्विकका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध संयतासंयतके होता है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छहबटे चौदह राजू प्रमाण कहा है। तथा इनके अनुत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाले जीव मारणान्तिक समुद्घातके समय नीचे और ऊपर कुछ कम छह राजूका स्पर्शन करते हैं, इसलिए यह कुछ कम बारह राजू कहा है।
३५१. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश-कीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पुरुषवेदके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। हास्य, रति, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी और स्थावर आदि चारके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार आयु, मनुष्यगति, तीन जाति, चार संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आतपके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो गति, समचतुरस्त्रसंस्थान, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर, श्रादेय और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक प्राङ्गोपाङ्ग और उसके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट.अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। औदारिकशरीरके उत्कृष्ट
१. प्रा० प्रती अगु० पजस इति पाठः । २. श्रा० प्रतौ सव्वलो० । उज्जो० उ० खेत्त०, अणु छच्चो० इति पाठः।
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