Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 364
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३५५ ओघं । साददंडओ तिगदिय० । इत्थि० णवुंस० देव० तप्पा० विसु० तिष्णि वि । अरदि- सोग० ओघं' । दोगदि - दोजादि - छस्संठा० - छस्संघ० - दोआणु ० दोविहा० -तसथावरादितिष्णियु० देवस्स । देवगदि०४ ज० वड्ढी क० १ अण्ण० तिरिक्ख० मणुस ० सव्वसं० । ओरालि० याव णिमि० त्ति सोधम्मभंगोर । ओरा० अंगो० देवस्तस तप्पा० संकिलि० । तित्थ० देवस्स । एवं पम्मा वि । णवरि पंचिंदियदंडओ सहस्सारभंगो । ६०३. सुक्काए खविगाणं संजमाभिमुहाणं च ओघं । साददंडओ तिगदिय० । सेसाणं पि आणदभंगो। देवगदि ०४ पम्मभंगो । ६०४. भवसि० ओघं । अब्भवसि ० पढमदंडओ ज० क० १ अण्ण० चदुग० सव्ववि० । सेसाणं ओघं । सासणे पढमदंडओ चदुग० सव्वविसु० । सादादिदंडओ चदुग० | पंचिं ० -ओरा० दंडओ चदुग० सव्वसंकि० । तिरिक्खगदितियं सत्तमाए सव्वविसु० | मिच्छादि० मदि० भंगो । असण्णी० पढमदंडओ सव्वविसु० । सेसं ओघं । आहार • ओघं । एवं जहण्णयं समत्तं । एवं सामित्तं समत्तं । दण्डक आदि संयम अभिमुख प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । सातावेदनीयदण्डकके तीनों पदोंका स्वामी तीन गतिका जीव है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके तीनों ही पदोंका स्वामी तत्प्रायोग्य विशुद्ध देव है । अरति और शोकका भङ्ग ओघके समान है । दो गति, दो जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति और त्रस व स्थावर आदि तीनों युगलोंके तीनों पदों का स्वामी देव है । देवगतिचतुष्क की जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर सर्वसंक्लिष्ट तिर्यन और मनुष्य यथायोग्य तीनों पदोंका स्वामी है । औदारिकशरीरसे लेकर निर्माण तककी प्रकृतियोंका भंग सौधर्म कल्पके समान है । औदारिक आंगोपांगके तीनों पदोंका स्वामी यथायोग्य तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट देव है । तीर्थङ्करप्रकृतिका स्वामी देव है । इसी प्रकार पद्मलेश्या में भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पचेन्द्रियजातिदण्डकका भंग सहस्रार कल्पके समान है । ६०३. शुक्ललेश्यामें क्षपक और संयमके अमिमुख प्रकृतियोंका भंग ओघके समान है । सातावेदनीय दण्डकके तीनों पदोंका स्वामी तीन गतिका जीव है। शेष प्रकृतियोंका भी भंग आनत कल्पके समान है । देवगतिचतुष्कका भंग पद्मलेश्याके समान है । ६०४. भव्योंमें ओघके समान भंग है । अभव्योंमें प्रथम दण्डकके तीनों जघन्य पदोंका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भंग ओघके समान है । सासादनसम्यक्व में प्रथम दण्डकके तीनों पदोंका स्वामी सर्वविशुद्ध चारों गतिका जीव है । सातावेदनीय आदि दण्डकके तीनों पदोंका स्वामी चारों गतिका जीव है । पचेन्द्रियजाति और औदारिकशरीरदण्डकके तीनों पदोंका स्वामी सर्व संक्लिष्ट चारों गतिका जीव है । तिर्यचगतित्रिकके तीनों पदोंका स्वामी सातवीं पृथिवीको सर्वविशुद्ध नारकी है । मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भंग है । असंज्ञी जीवोंमें प्रथम दण्डकके तीनों पदोंका स्वामी सर्वविशुद्ध जीव है। शेष भंग ओघके समान है । आहारक जीवोंमें ओघके समान भंग है । इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । १. ० प्रतौ तिणि वि श्रोषं इति पाठः । २. आ. प्रतौ णिमि० इत्थि० सोधम्मभंगो इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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