Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 373
________________ ३६४ महाबँधे अणुभागबं धाहियारे सव्वजीवाणं के० ? असंखें० । अनंतगुणवड्डि० दुभागो सादिरे० । अनंतगुणहा० दुभागो देसू० । अवत्त० अनंतभागो । सेसाणं पगदीणं एसेव भंगी । णवरि अवत्तव्व० असंखे० भा० । आहार०२ पंचवड्डि ' - पंचहाणि अवहि ० - अवत्त० संखैज ० । अनंतगुणवड्डिहाणी ० • णाणा० भंगो । एवं भुजगारभंगो कादव्वो । एवं याव अणाहारए ति दव्वं । परिमाणं ६१९. परिमाणं दुवि० । ओघेण पंचणा० छदंसणा० - अहक०-भय-दु०-तेजा०क०वण्ण४- अगु० - उप०- णिमि०-पंचंत० छवड्डि-छहाणि अवट्ठि ० कँत्तिया ? अनंता । अवत्त कतिया ? संखेखा । श्रीणगि ०३ - मिच्छ० अट्ठक० ओरालि० एवं चैव । णवरि अवत्त० असंखे० । तिणिआउ०- वेउब्वियछ० छवड्डि-छहाणि - अवट्ठि ०केंत्तिया ? असंखे० । आहार०२ सव्वपदी के० ९ संखेजा । तित्थय० तेरसपदा के० ? असंखेजा । अवत्त ० के० ? संखे० । सेसाणं सादादीणं चोद्दसपदा' केति ० १ अनंता । एवं भुजगारभंगो काव्यो । एवं याव अणाहारए त्ति दव्वं । १०- अवत्त ० । असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनन्तगुणवृद्धिके बन्धक जीव सब जीवोंके साधिक द्वितीय भागप्रमाण हैं । अनन्तगुणहानिके बन्धक जीव सब जीवोंके कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं। शेष प्रकृतियों का यही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । आहारकद्विककी पाँच वृद्धि, पाँच हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इस प्रकार भुजगारभंगके समान करना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । परिमाण ६१९. परिमाण दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायको छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय और औदारिकशरीरके बन्धक जीवोंका यही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। तीन आयु और वैक्रियिक छहकी छह वृद्धि, छह हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । तीर्थङ्करप्रकृतिके तेरह पदके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष सातावेदनीय आदि प्रकृतियोंके चौदह पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इस प्रकार भुजगारभङ्गके समान करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । १. आ० प्रतौ आहार पंचवट्टि इति पाठः । २. ता० प्रती मेसाणं नोहा इति पाठः । ३. ता० प्रतौ भुजगारभंगो नाव इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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