Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 372
________________ वड्ढीए भागाभागो णाणाजीवेहि भंगविचओ ६१७. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुवि० । ओघेण पंचणा० -णवदंसणा ०मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु० -ओरालिय० – तेजा ० - क ० - वष्ण०४ - अगु० - उप० - णिमि०पंचत० छवड्डि-छहाणि अवट्ठि० णियमा अत्थि । सिया एदेय अवत्तगे य । सिया एदे य अवत्तव्वगाय । तिण्णि आउ • सव्वपदा भयणिजा । वेउव्वियछ० - आहार दुगं तित्थय०' अणंतगुणवड्ढि - हाणि० णिय० अत्थि । सेसपदा भयणिञ्जा | सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वपदा भणिज्जा । एवं भुजगारभंगो कादव्वो । एवं अणाहारए त्ति दव्वं । भागाभागो ६१८. भागाभागानुगमेण दुवि० | ओघेण पंचणा० णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०भय-दु०-ओरा०-तेजा०-क० वण्ण ०४- अगु० - उप० णिमि० - पंचत० पंचवड्डि- हाणि-अवहि ० ३६३ अन्तर्मुहूर्तकालके बाद ये नियमसे होती हैं । इन प्रकृतियोंका अवक्तव्यपद उपशमश्रेण उतरते समय या उतरते समय मर कर देव होनेपर होता है । किन्तु यहाँ जघन्य अन्तर प्राप्त करना है, इसलिए अन्तर्मुहूर्तके अन्तरसे दो बार उपशमश्रेणि पर आरोहण कराके इनका ब करानेसे जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त ले आये । तथा उपशमश्रेणिका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण होनेसे इनके अवक्तव्यपदका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुदल परिवर्तनप्रमाण कहा है। इनके अवस्थितपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर पाँच वृद्धियों और पाँचहानियोंके ही समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट बन्धकाल साधिक तेतीस सागर होनेसे यहाँ इसकी पाँच वृद्धि, पाँच हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदका उत्कृष्ट अन्तर उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है । नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ६१७. नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव नियमसे हैं । कदाचित् ये होते हैं और एक अवक्तव्य पदका बन्धक जीव होता है । कदाचित् ये होते हैं और अनेक अवक्तव्य पदके बन्धक जीव होते हैं। तीन आयुओंके सब पद भजनीय हैं। वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिकी अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिके बन्धक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। शेष सब प्रकृतियोंके सब पद् भजनीय हैं । इस प्रकार भुजगारके समान भङ्ग करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । भागाभाग ६१८. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओमसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? १. ता० प्रतौ भवणिजा । आहार० २ तित्थ इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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