Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 375
________________ ३६६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अहचों सव्वलो० । दोगदि-दोआणु० तेरसपदा छच्चों । अवत्त० खेत्त० । ओरा० तेरसपदा णाणा०भंगो। अवत्त० बारह० । वेउव्वि०-वेउ०अंगो० तेरसपदा बारह । अवत्त० खेत । तित्थ० तेरसपदा० अहचों । अवत्त० खेत्तभंगो । सेसाणं सादादीणं चोदेसपदा सव्वलो० । एवं भुजगारभंगो याव अणाहारए त्ति णेदव्यं । बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुके चौदह पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो गति और दो आनुपूर्वीके तेरह पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। औदारिकशरीरके तेरह पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके तेरह पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके तेरह पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष सातावेदनीय आदि प्रकृतियोंके चौदह पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक भुजगार भङ्गके समान जानना चाहिए। विशेषार्थ-पाँच ज्ञानावरणादिके तेरह पदोंका बन्ध एकेन्द्रियादि सब जीव करते हैं । इसलिए उक्त पदोंकी अपेक्षा सब लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। इसी प्रकार स्त्यानगृद्धिदण्डक, मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण चार और औदारिकशरीरकी अपेक्षा उक्त तेरह पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन जानना चाहिए। पाँच ज्ञानावरणादिका अवक्तव्यपद उपशमश्रेणिमें गिरते समय होता है, तथा प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका अवक्तव्यपद विरतसे विरताविरत या अविरत होते समय होता है, इसलिए इस पदकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। चारों गतियोंमें सम्यग्दृष्टि जीवोंके सासादन गुणस्थानके प्राप्त होनेपर स्त्यानगृद्धि आदिका अवक्तव्यपद होता है। यतः यह स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण है, क्योंकि इसमें देवोंके विहारवत्स्वस्थान स्पर्शनकी प्रधानता है। इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। विरत या विरताविरत जीव मर कर उपपादके समय भी अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका अवक्तव्य पद करते हैं और इनका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण है, अतः उक्त प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पशन उक्त प्रमाण कहा है। सासादन जीवोंका स्पशन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण है और इनका मारणान्तिक समुद्धातके समय मिथ्यात्वको प्राप्त होकर मिथ्यात्वका अवक्तव्यबन्ध सम्भव है, अतः मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। नरकायु और देवायुका बन्ध स्वस्थानमें असंज्ञी आदि और आहारकद्विकका बन्ध अप्रमत्तसंयत जीव करते हैं, अतः इन प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। मनुष्यायुका बन्ध स्वस्थानमें एकेन्द्रियादि जीव और विहारवत्स्वस्थानमें देव करते हैं, इसलिए इसके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण कहा है । मात्र अग्निकायिक और वायुकायिक जीव मनुष्यायुका बन्ध नहीं करते, इतना विशेष जानना चाहिए। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वोका नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्बात करनेवाले जीव भी बन्ध करते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426