Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 378
________________ वड्ढी अन्तरं अंतरं ६२३. अंतराणुगमेण दुवि० । ओघे० पंचणा० छदंस० - चंदु संज० -भय-दु० ० -तेजा०क०-वण्ण०४-अगु० - उप० - णिमि० - पंचंत० छवड्डि-छहाणि-अवट्ठिदबंधंतरं णत्थि अंतरं । अवत्त० ज० ए०, उ० वासपुधत्तं ० । श्रीणगिद्धि ०३ - मिच्छ० - अणंताणु०४ तेरसपदा० त्थ अंतरं । [ अवत० ] ज० ए०, उ० सत्तरादिंदियाणि । सादादीणं चोदसपदा ० णत्थि अंतरं । अपचक्खाण०४ तेरसपदा णत्थि अंतरं । अवत्त० ज० ए०, उ० चौसरादिदियाणि । एवं पच्चक्खाण०४ । णवरि अवत्त० ज० ए०, उ० पण्णारसरादिदियाणि । तिण्णि आउ० पंचवड्डि- पंचहाणि अवट्ठि० ज० ए०, उ० असंखेजा लोगा । गुणवड्डि-हाण-अवत्त ज० ए०, उ० चदुवीसं मुहुत्तं । वेउ व्वियछ०आहार ०२ पंचवड्डि-पंचहाणि - अवट्ठि ० ज० ए०, उ० असंखेंज्जा लोगा । अनंतगुण ० भागप्रमाण ही है । इसीसे इन पदोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तोर्थङ्कर प्रकृतिका सब पदोंका वैक्रियिकपटकके समान होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। मात्र इसका अवक्तव्यपद करनेवाले जीव संख्यात ही होते हैं, अतः इसके अवक्तव्यपदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । आहारकद्विककी पाँच वृद्धि और पाँच हानि लगातार संख्यात बार ही सम्भव हैं, इसलिए इन पदोंका उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है, क्योंकि एक आवलिके असंख्यातवे भागको संख्यातसे गुणित करने पर भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही काल उपलब्ध होता है । इनका जघन्य काल एक समय है यह स्पष्ट ही है। तथा इनका अवक्तव्य और अवस्थित पद अधिक से अधिक संख्यात बार होगा, इसलिए इन दोनों पदोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। इसी प्रकार भुजगार अनुयोगद्वारको ध्यानमें रखकर मार्गणाओंमें भी यह काल समझ लेना चाहिए । Jain Education International ३६९ अन्तर ६२३. अन्तरानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । स्त्यानगृद्धि तीन मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तेरह पदोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन रात है । सातावेदनीय आदिके चौदह पदोंका अन्तरकाल नहीं है । 'अप्रत्याख्यानावरण चारके तेरह पदोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है र उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन रात है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चारके सब पदों का अन्तरकाल जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन रात है। तीन आयुओंकी पाँच वृद्धि, पाँच और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अनन्तगुणवृद्धि, अनन्तगुणहानि और अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है। वैक्रियिक छह और आहारिकद्विककी पाँच वृद्धि, पाँच हानि और भवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है । ४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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