Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 362
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं १५३ ५९९. आभिणि-सुद०-ओधिः पढमदंड ओ ओघं । सादासाद-थिरादितिण्णियु० चदुगदि० । सेसाणं पि संजमाभिमुहाणं ओघं । मणुसगदिपंचग० ज० वड्डी क० ? अण्ण. देव० रइ० सागा० तप्पा० उक्कस्ससंकिलेसादो पउिभग्गस्स अणंतभागेण वड्डिदूण अवढिदस्स । तस्सेव से काले ज० अवहाणं । ज० हा० क. ? अण्ण० सागा० उक०संकि० मिच्छत्ताभिमु० चरिमे अणु० वट्ट० तस्सेव ज० हाणी । मणुसाउ० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० देव-णेरइ० जहणियाए पजत्तणिवत्तीए ज. परिय०मज्झिम० [अणंतभागेण वविद्ण वड्डी ] हाइदण हाणी एकद. अवट्ठाणं । देवाउ० ज० वड्ढी क० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० ज० पजत्तणिव्व० ज० परिय०मज्झिम० । देवगदि०४ ज० वडढी क० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुसस्स मणुस गदिभंगो। पंचिं०-तेजा०-क०-समचदु०-पसत्थ०४-अगु०३-पसत्थ०-तस०४-सुभगसुस्सर-आदें-णिमि०-उच्चा० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० चदुगदि० तिण्णि वि मणुसगदिभंगो । एवं ओधिदंसणि-सम्मादि०-खइग०-वेदग०-उवसम०-सम्मामिच्छादिहि त्ति । णवरि खइगे पसत्था० सत्थाणे ज० वड्डी क० ? अण्ण० सव्वसंकि० अणंतभागेण तिण्णि वि० । मणपजव० खविगाणं ओघं । सेसाणं ओधिभंगो । एवं संजद-सामाइ० ५९९. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें प्रथम दण्डकका भङ्ग ओघके समान है। सातावेदनीय, असातावेदनीय और स्थिर आदि तीन युगलके तीनों पदोंका स्वामी चारों गतिका जीव है। शेष संयमके अभिमुख प्रकृतियोंका भी भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगतिपञ्चककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशसे प्रतिभन्न हुआ अन्यतर देव और नारकी जीव अनन्तभागवृद्धिरूपसे जघन्य वृद्धिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख हुआ जो अन्यतर जीव अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित है वह जघन्य हानिका स्वामी है। मनुष्यायुकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान तथा परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर देव और नारकी अनन्तभागवृद्धि के साथ जघन्य वृद्धिका स्वामी है, अनन्तभागहानिके साथ जघन्य हानिका स्वामी है तथा इनमेंसे किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। देवायुकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और जघन्य परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य यथायोग्य तीनों पदोंका स्वामी है। देवगतिचतुष्ककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर तियश्च और मनुष्यके मनुष्यगतिके समान भङ्ग है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और उच्चगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर चारों गतिका जीव तीनों ही पदोंका स्वामी है जो मनुष्यगतिके समान भङ्ग है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि क्षायिकसम्यक्त्वमें प्रशस्त प्रकृतियोंकी स्वस्थानमें जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर सर्वसंक्लिष्ट जीव अनन्तभाग वृद्धि, हानि और तदनन्तर अवस्थानरूपसे तीनों ही पदोंका स्वामी है। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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