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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे दुगदिय० तिरिक्ख० मणुस० परिय०मज्झिम'। मणुसगदिदंडओ तिगदियः । तिरिक्ख०३ ओघ । पंचिं०-तेजा०-क०-पसत्थ०४-अगु०३-तस४-णिमि० तिगदियस्स सव्वसंकि० । ओरालि०-ओरा०अंगो० उजो० णेरइग. सव्वसंकि० । वेउ०-वेउ० अंगो० ओघं । आदावं दुगदिय० । सेसं ओघं ।
५९७. अवगदवेदे पढमदंडओ ओघं । साद०-जस०२-उच्चा० ज० वड्डी क.? अण्ण० विदियसमयअवगदवेदे० । ज० हा० क० ? अप्प० उपसाम० परिवद. दुसमय सुहुमसंप० । एवं सुहुमसंप० । कोधादि०४ पढमदंडओ इत्थिभंगो। सेसं ओघं ।
५९८. मदि०-सुद० पढमदंडओ ज० वड्डी क० १ अण्ण० मणुसस्स संजमादो परिवदमाणस्स दुसमयबंधस्स तस्स ज० वड्डी । ज० हा० क० ? अण्ण० मणुसस्स सागा० सव्वविसु० संजमाभिमु० चरिमे अणु० वट्ट० तस्स ज० हाणी । ज० अवट्ठा० कस्स० ? अण्ण० पंचिं० सण्णि० सव्वाहि प० तप्पा०उक्क० विसोधीदो परिभग्गस्स अणंतभागेण वड्डिदृण अवट्ठिदस्स तस्स ज० अवडा० । सादादिदंडओ ओघं चदुगदियस्स । सेसाणं पि ओघं । एवं विभंग ।
परिणामवाले दो गतिके तिर्यश्च और मनुष्य हैं । मनुष्यगतिदण्डकके तीनों पदोंका स्वामी तीन गतिका जीव है। तिर्यश्चगतित्रिकका भंग ओघके समान है। पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणके तीनों पदोंका स्वामी सर्वसंक्लिष्ट तीनों गतिका जीव है । औदारिकशरीर, औदारिक आंगोपांग और उद्योतके तीनों पदोंका स्वामी सर्वसंक्लिष्ट नारकी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकआंगोपांगका भंग ओघके समान है । आतपके तीनों पदोंका स्वामी दो गतिका जीव है। शेष भङ्ग ओघके समान है।
५९७. अपगतवेदी जीवोंमें प्रथम दण्डक ओघके समान है। सातावेदनीया, यश कीर्ति और उच्चगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर द्वितीय समयवर्ती अपगतवेदी जीव जघन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला द्वितीय समयवर्ती सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक जीव जघन्य हानिका स्वामी है। इसी प्रकार सूक्ष्मसांपरायसंयत जीवोंके जानना चाहिए। क्रोध आदि चार कषायवाले जीवोंमें प्रथम दण्डकका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। शेष भङ्ग ओघके समान है।
५९८. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें प्रथम दण्डककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? संयमसे गिर कर द्वितीय समयमें बन्ध करनेवाला अन्यतर मनुष्य जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत सर्वविशुद्ध और संयमके अभिमुख होकर अन्तिम समयमें अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मनुष्य जघन्य हानिका स्वामी है । जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभग्न हुआ जो अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संज्ञी जीव अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित है वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग चार गतिके जीवके ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग भी ओघके प्रकतियोंका भङ भी ओघके समान है। इसी प्रकार विभङ्गज्ञानी जीवों में जानना चाहिए।
१. ता० प्रा० प्रत्योः मणुस० ३ परियमज्झिम० इति पाठः। २. ता० श्रा०-प्रत्योः ओघं । सुद. जस० इति पाटः । ३ श्रा०प्रतौ अण्ण. उवसमपढम० दुसमय० इति पाठः।
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