Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 230
________________ अप्पाबहुगपरूवणा ४१८, सव्वतिव्वाणुभागं केवलदंस० । चक्खु ० अनंतगु • अचक्खु० अनंतगु० । अधिदं० अणंतगुण० । थी० प्रणतगु० । णिद्दाणिद्दा० अनंतगु० । पचलापचला. अनंतगु० । णिद्दा० अनंतगु० । पचला० अनंतगु० । २२१ ३१६, सव्वतिव्वाणुभागं साद० । असाद० अनंतगु० । I ४२०. सव्वतिव्वाणु० मिच्छ० । अनंताणुबंधिलो० अनंतगु० । माया ० विसेसा०| कोधे विसे० | माणो विसे० । संजलणाए लोभो अनंतगु० । माया ० विसे० । कोधे विसे० | माणो विसे० । एवं पञ्चक्खाण ०४ - अपञ्चक्खाण ०४ । णवुंस० अनंतगु० । अरदि० प्रणतगु ० | सोग० अनंतगु० । भय० अनंतगु० । दुर्गुच्छ० अनंतगु० । इत्थि० अनंतगु० । पुरिस० अनंतगु० । रदि० अनंतगु० । हस्स० अनंतगु० । I ४२१. सव्वतिव्वाणुभागं देवाउ० । णिरयाउ० अनंतगु० । मणुसाउ० अतगु० । तिरिक्खाउ० अनंतगु० । ४२२. सव्वतिव्वाणुभागं देवगदि० । मणुस० अनंतगु० । णिरय० अनंतगु० । , ४१८. केवलदर्शनावरण सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे चक्षुदर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे अचक्षुदर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अवधि - दर्शनावरणका अनुभाग श्रनन्तगुणा हीन है। इससे स्त्यानगृद्धिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे निद्रानिद्राद्रिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे प्रचलाप्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा ही है । इससे निद्राका अनुभाग अनन्तगुणा हौन है। इससे प्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । ४१६. सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे असातावेदनीयका अनुभाग अनन्तगुणाहीन है । 1 ४२०. मिध्यात्व सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे अनन्तानुबन्धी लोभका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे अनन्तानुबन्धी मायाका अनुभाग विशेष हीन है । इससे अनन्तानुबन्धी क्रोका अनुभाग विशेष हीन है। इससे अनन्तानुबन्धी मानका अनुभाग विशेष हीन । इससे संज्वलन लोभका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे संज्वलन मायाका अनुभाग विशेष हीन है । इससे संज्वलन क्रोधका अनुभाग विशेष हीन है । इससे संज्वलन मानका अनुभाग विशेष हीन है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चार और अप्रत्याख्यानावरण चारका अनुभाग सम्बन्धी अल्पबहुत्व कहना चाहिए । इससे नपुंसकवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अरतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे शोकका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे भयका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे जुगुप्साका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे स्त्रीवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे पुरुषवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे रतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन । इससे हास्यका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। Jain Education International ४२१. देवायु सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे नरकायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे मनुष्यायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे तिर्यवायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । ४२२. देवगति सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे मनुष्यगतिका अनुभाग अनन्तगुणा १. ता० श्रा० प्रत्योः श्रांतगु० णीचा० श्रचक्खु ० इति पाठः । २ ता० प्रतौ थि ( थी ) ० इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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