Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 358
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३४९ थावर ० - तिष्णियुग ० - दोगो० ज० वड्डी क० ? अण्ण० परियत्तमाणमज्झिम० अनंतभागेण तिणि वि० । पंचिं ० - ओरा ० अंगो० -तस० ज० वड्डी क० ? अण्ण० सणकुमार याव उवरिमदेवस्स मिच्छा० सागा० सव्वसंकि० अनंतभागेण तिण्णि वि० । ओरा०तेजा ० क ० - पसत्थ ०४ - अगु०३ - बादर-पञ्जत्त - पत्ते ० - णिमि० ज० वड्डी क० ? अण्ण० मिच्छा० सागा० णिय० उक्क० संकि० अनंतभागेण तिण्णि वि० । आदा० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० मिच्छादि० ईसाणंतदेव० सागा० सव्वसंकि० अनंतभागेण तिणि वि० । उज्जो० ज० वड्डी क० ? अण्ण० मिच्छादि० सागा० सव्वसंकि० अनंतभागेण तिण्णि वि० । तित्थ० णिरयभंगो । भवण० वाण० - जोदिसि० सोधम्मीसा० देवोधं । णवरि पंचिं ० -तस० परि०मज्झि० अनंतभागेण तिष्णि वि० । ओरालि - सरीर अंगोवंग ० तप्पाऔग्गसंकिलिट्ठस्स तिण्णि वि० । ५९२. सणकुमार याव सहस्सार ति पढमपुढविभंगो । आणद याव णवगेवजा ति पढमदंडओ थीणगिद्धिदंडओ साददंडओ इत्थि० - णवुंस० - अरदि-सोग०- मणुसाउ० देवोघं । मणुस ० - पंचिं ० -ओरा० -तेजा० - क० - ओरालि० अंगो० - पसत्थ०४ - मणुसाणु ०अगु०३ -तस०४ - णिमि० ज० वडढी क० १ अण्ण० मिच्छादि० सागा० सव्वसं० संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर, तीन युगल और दो गोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव क्रमसे अनन्तभागरूप वृद्धि, हानि और अवस्थान रूपसे तीनों ही पदोंका स्वामी है । पचेन्द्रियजाति, औदारिकआङ्गोपाङ्ग और त्रसकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और सर्व संक्लिष्ट अन्यतर सनत्कुमारसे लेकर उपरिम ग्रैवेयकतकका मिथ्यादृष्टि देव क्रमसे अनन्तभागवृद्धि, हानि और अवस्थानरूपसे तीनों ही पदोंका स्वामी है । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि, साकार जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त जीव क्रमसे अनन्तभाग वृद्धि, हानि और अवस्थानद्वारा तीनों ही पदोंका स्वामी है। आतपकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर ऐशान कल्प तकका मिथ्यादृष्टि देव क्रमसे अनन्तभागवृद्धि, हानि और अवस्थानरूपसे तीनों ही पदोंका स्वामी है । उद्योतकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि, साकार - जागृत और सर्वसंक्लेशयुक्त देव क्रमसे अनन्तभाग वृद्धि, हानि और अवस्थानरूपसे तीनों ही पदोंका स्वामी है | तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग नारकियोंके समान है । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म ऐशानकल्पके देवों में सामान्य देवोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि पवेन्द्रियजाति और त्रसके तीनों ही पदोंका स्वामी परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला देव क्रमसे अनन्तभागवृद्धि, हानि और अवस्थानरूपसे होता है । औदारिकशरीर आङ्गोपांगके तीनों ही पदोंका स्वामी तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट देव होता है । ५९२. सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतक प्रथम पृथिवीके समान भङ्ग है। आनतकल्पसे लेकर नौवें ग्रैवेयकतकके देवोंमें प्रथम दण्डक, स्त्यानगृद्धिदण्डक, सातावेदनीयद्ण्डक, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, अरति शोक और मनुष्यायुका भंग सामान्य देवोंके समान है । मनुष्यगति, पचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक अंगोपांग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणकी जघन्य वृद्धिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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